(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित तथा श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्वारा लिखित ‘क्या लिखें ?’ शीर्षक ललित निबन्ध से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखें-
पाठ का नाम क्या लिखें? लेखक का नाम-श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी।
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का कथन है कि दूर के ढोल इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि उनकी कर्णकटु ध्वनि बहुत दूर तक नहीं पहुँचती है। जब वे बज रहे होते हैं तो समीप बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फाड़ रहे होते हैं जब कि दूर किसी भी नदी के किनारे सन्ध्याकालीन समय के शान्त वातावरण में बैठे हुए लोगों को अपने मधुर स्वर से प्रसन्न कर रहे होते हैं।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का कथन है कि ढोल की कर्कश ध्वनि दूर बैठे किसी व्यक्ति को प्रसन्न इसलिए करती है; क्योंकि वह अपने मन में कोलाहल से पूर्ण किसी घर के कोने में शादी के कारण लज्जाशील युवती की भी कल्पना करने लगता है। शादी की मधुर कल्पना, प्रेम, उल्लास (हर्ष), संकोच, सन्देह और दुःख से युक्त हृदय के कम्पन उस ढोल के कर्णकटु शब्दों को मधुर बना देते हैं। इसका कारण यह है कि उस नव-विवाहिता के हृदय में आनन्द का मधुर राग, उत्सव, विशेष प्रसन्नता और प्रेम का संगीत-ये तीनों तत्त्व एक साथ अवस्थित रहते हैं। कहने का भावे यह है कि यदि विवाह होने की प्रसन्नता, जीवन की मधुर कल्पनाएँ और प्रिय के प्रति प्रेम की भावना न हो तो नव-विवाहिता को भी विवाहोत्सव में बजने वाला ढोल सुहावना न लगे।
(स)
⦁ ढोल की ध्वनि जब दूर से आती सुनाई देती है, उसी समय वह कानों में मधुरता का संचार करती है, लेकिन पास से सुनाई देने पर वह कानों के पर्दे भी फाड़ सकती है। लेकिन नव-वधू की कल्पना ” दोनों ही स्थितियों में–विवाहोत्सव में उपस्थित अथवा दूर बैठे विवाहोत्सव की कल्पना कर रहे–व्यक्ति के मन में मधुरता का संचार करती है और समीप बैठे रहने पर भी उसे ढोल की ध्वनि मधुर ही लगती है।
⦁ ढोल की ध्वनि समीप बैठे व्यक्ति के लिए कर्कश होती है और दूर बैठे व्यक्ति के लिए मधुर। लेकिन जब समीप में बैठा व्यक्ति विवाहोत्सव में उपस्थित किसी नव-वधू की कल्पना अपने मन में कर लेता है, उस समय उसे ढोल की कर्कश ध्वनि भी मधुर ही सुनाई पड़ती है।
⦁ ढोल की कर्कश ध्वनि को किसी नव-वधू के प्रेम, उल्लास, संकोच आदि भावों से युक्त हृदय के कम्पन मधुर बना देते हैं, क्योंकि उसके साथ आनन्द की मधुर ध्वनि, उत्सव का आनन्द और प्रेम का संगीत तीनों ही मिले-जुले रहते हैं।
⦁ दूर के ढोल सुहावने इसलिए होते हैं क्योंकि कानों को कठोर लगने वाली उनकी कर्कश ध्वनि दूर तक नहीं पहुँचती।