(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित ‘भारतीय संस्कृति’ नामक निध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-भारतीय संस्कृति। लेखक का नाम–डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी कहते हैं कि हमें सर्वप्रथम वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास के अनुचित परिणामों को ध्यान में रखना चाहिए। विचार करने योग्य दूसरी बात यह है कि भारतीय संस्कृति अथवा भारतवासियों की सम्पूर्ण व एकीकृत चेतन शक्ति ही इस देश का जीवन है। बिना इसके देश का जीवन ही सम्भव नहीं है। ऐसी चेतन शक्ति; जो नैतिकता पर आश्रित है; से हमारे देश के सभी शहर, गाँव और सभी प्रदेश, सभी धर्म और उनको मानने वाले विभिन्न सम्प्रदाय, इन सम्प्रदायों के विभिन्न वर्ग और इनसे सम्बद्ध जातियाँ आपस में बँधी हुई हैं। जहाँ इनमें सभी तरह की विभिन्नताएँ और विषमताएँ फैली हुई हैं, वहीं उन सबमें एक एकता है, जिसे ध्यान से देखने, समझने और पहचानने की आवश्यकता है।
(स)
⦁ क्रान्ति के लिए बापू ने सामान्य जनता को बुद्धिजीवियों के नेतृत्व में क्रान्ति करने के लिए तैयार किया था और गद्यांश के रेखांकित अंश में उल्लिखित नैतिक चेतना का सहारा लिया था।
⦁ लेखक ने भारतीय संस्कृति की एकता और उसके बल का यह महत्त्व बताया है कि इसी के कारण सम्पूर्ण भारत के सभी शहर, गाँव, प्रदेश, विभिन्न जातियाँ, सम्प्रदाय, वर्ग आदि एक सूत्र में बँधे हुए हैं, जिसके कारण गाँधीजी ने देश की जनता को क्रान्ति के लिए तत्पर किया।