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भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले ॥

सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं ॥

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[ रव = ध्वनि। बाजि = घोड़ा। महि = पृथ्वी। अहि = शेषनाग, सर्प। कोल = वाराह। कूरुम = कच्छप। कोदंड = धनुष। खंडेउ = तोड़ दिया।]

प्रसंग-प्रस्तुत पदे में तुलसीदास जी ने धनुष टूटने के बाद उत्पन्न हुई स्थिति का अत्यधिक आलंकारिक वर्णन किया है। |

व्याख्या—गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि धनुष टूटने का घोर-कठोर शब्द त्रैलोक्य में व्याप्त हो गया जिससे सूर्य के घोड़े अपना नियत मार्ग छोड़कर चलने लगे, आठों दिशाओं में स्थित आठ दिग्गज अर्थात् दिशाओं की रक्षा करने वाले  आठ हाथी चिंघाड़ने लगे, सम्पूर्ण पृथ्वी डोलने लगी; शेषनाग, वाराह और कछुआ भी बेचैन हो उठे; देवता, राक्षसगण और मुनिजन कानों पर हाथ रखकर (जिससे ध्वनि सुनाई न पड़े) व्याकुल होकर विचार करने लगे कि यह क्या हो रहा है। अन्तत: जब सभी को इस बात का निश्चय हो गया कि श्रीरामचन्द्र जी ने शंकर जी के धनुष को तोड़ दिया है तब सब उनकी जय-जयकार करने लगे।

काव्यगत सौन्दर्य
⦁    धनुष टूटने के बाद की स्थिति का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।
⦁    भाषा-अवधी
⦁    शैली–प्रबन्ध व चित्रात्मक।
⦁    रसे—अद्भुत।
⦁    छन्द-सवैया।
⦁    अलंकार-अनुप्रास और अतिशयोक्ति।
⦁    गुण-ओज।
⦁    शब्दशक्ति-अभिधा और लक्षणा।।

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