[ बिलोचन = नेत्र। तून = तरकस। सरासन = धनुष। सुठि = सुन्दर। सुभाय = स्वाभाविक रूप से। तुम त्यों = तुम्हारी ओर। रावरे = तुम्हारे।]
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में ग्रामवधुएँ सीता जी को घेरकर एक ओर बैठे हुए श्रीराम के विषय में विनोद करती हुई उनसे प्रश्न पूछ रही हैं।
व्याख्या-ग्रामवधुएँ सीताजी से पूछ रही हैं कि जो सिर पर जटा धारण किये हुए हैं, जिनके वक्षस्थल और भुजाएँ विशाल हैं, नेत्र लाल हैं तथा भौंहें तिरछी-सी हैं। जो तरकस, धनुष और बाण धारण किये हुए इस वन-मार्ग में बहुत शोभायमान हो रहे हैं, जो सहज-स्वाभाविक रूप में बड़े सम्मान के साथ बार-बार तुम्हारी ओर देखते हुए हमारी मन भी आकर्षित कर रहे हैं। हे सखी! तुम हमें यह बताओ कि ये ” सुन्दर साँवले रूप वाले (राम) तुम्हारे कौन लगते हैं?
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ ग्रामवधुओं ने सीताजी से बहुत सात्विक विनोद से परिपूर्ण स्वाभाविक प्रश्न किया है। ग्राम-वधूटियों का वाक्-चातुर्य दर्शनीय है। स्त्रियों की बातों में जो स्वाभाविक व्यंजना होती है, उसका बड़ा ही मनोवैज्ञानिक चित्रण है।
⦁ यहाँ श्रीराम के रूप और मुद्रा का सुन्दर वर्णन हुआ है।
⦁ भाषा-सुकोमल ब्रज।
⦁ शैली-मुक्तक।
⦁ छन्द-सवैया।
⦁ रस-शृंगार।
⦁ अलंकार– सर्वत्र अनुप्रास।
⦁ गुण-माधुर्य।
⦁ शब्दशक्ति-व्यंजना।