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मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं बज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर-धारन ।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥

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[ मानुष = मनुष्य। ग्वारन = ग्वाले। धेनु = गाय। मॅझारन = मध्य में। पाहन = पाषाण, पत्थर। पुरंदर = इन्द्रा खग = पक्षी। बसेरो करौं = निवास करू। कालिंदी-कूल = यमुना का किनारा। डारन = डाल पर, शाखा पर।]
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्य रसखान कवि द्वारा रचित ‘सुजान-रसखान’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘सवैये’ शीर्षक से अवतरित है।

प्रसंग-इस पद्य में रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त किया है और अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि (ब्रज) में जन्म लेने एवं उनके समीप ही रहने की कामना की है।

व्याख्या-रसखान कवि कहते हैं कि हे भगवान्! मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म प्राप्त करू तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वालों के मध्य निवास करूं। यदि मैं पशु योनि में जन्म ग्रहण करू, जिसमें मेरा कोई वश  नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नन्द जी की गायों के बीच विचरण करता रहूँ। यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनें, जिसे आपने इन्द्र का घमण्ड चूर करने के लिए और जलमग्न होने से गोकुल ग्राम की रक्षा करने के लिए अपनी अँगुली पर छाते के समान उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी योनि में भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम्ब वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करू।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    रसखान कवि की कृष्ण के प्रति असीम भक्ति को प्रदर्शित किया गया है। उनकी भक्ति इतनी उत्कट है कि वह अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण के समीप ही रहना चाहते हैं।
⦁    भाषा– ब्रज।
⦁    शैली-मुक्तक
⦁    रस-शान्त एवं भक्ति।
⦁    छन्द-सवैया।
⦁    अलंकार-‘कालिंदी-कुल कदंब की डारन’ में अनुप्रास।
⦁    गुण–प्रसाद।

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