[ अरि = शत्रु। रुण्ड = सिरविहीन शरीर। वितुण्ड = हाथी।] ।
प्रसंग—प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने राणा प्रताप के शौर्य से युद्धभूमि में फैले हाहाकार का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि यदि कोई शत्रु राणा प्रताप पर हमला करने के लिए उठा भी तो वह वहीं धाराशायी हो गया अर्थात् राणा प्रताप द्वारा उसे घोड़े पर ही ढेर कर दिया गया। राणा प्रताप के पराक्रम का बयान करते हुए कवि कहता है कि वह शत्रु सेना से लड़ते-लड़ते कभी-कभी अपने घोड़े पर खड़ा भी हो जाता, इस प्रकार प्रचंड शत्रुओं के विशाल दलों को वह खदेड़-खदेड़ उन पर हमला करता था। राणाप्रताप के हमले से शत्रुओं के धड़ हाथियों की सँड़ों के समान गिर रहे थे। हाथियों और घोड़ों की भयंकर विकलता के कारण युद्धभूमि नरमुण्डों से पटी हुई दिखाई पड़ रही थी।
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ कवि के माध्यम से राणा प्रताप के पराक्रम का बड़ा ही ओजस्वी वर्णन किया गया है।
⦁ भाषा-खड़ी बोली।
⦁ रस-वीर।
⦁ अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश, अतिशयोक्ति।
⦁ शैली-ओजपूर्ण।
⦁ भावसाम्य-महाकवि भूषण द्वारा वीर रस का ऐसा ही वर्णन किया गया है-
निकसत म्यान ते मयूखें अलैभानु कैसी,
फारें तमतोम से गयंदन के जाल को।
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल को।