देश में असहयोग आन्दोलन के मन्द पड़ते ही चन्द्रशेखर का झुकाव शस्त्र-क्रान्ति की ओर हो गया। उन्हें स्वतन्त्रता-संग्राम के लिए बमों और पिस्तौलों का निर्माण कराने के लिए धन की आवश्यकता हुई। इसके लिए उन्होंने मोटर ड्राइवरी सीखी और एक मठाधीश के शिष्य बने। इन्होंने सरदार भगतसिंह, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी आदि के साथ मिलकर एक मजबूत संगठन बनाया। योजना के अनुसार इन सबने 9 अगस्त, 1925 ई० को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। इस काण्ड में पकड़े जाने पर रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी हो गयी, शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास और 15 क्रान्तिकारियों को 3 साल की जेल की सजा हुई, परन्तु चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरकार की नजर से बच निकले। इन्हें पकड़ने के सारे सरकारी प्रयास विफल हो गये।।
सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत में हो रहे स्वाधीनता के झगड़ों की जाँच के लिए आया। इस कमीशन के सारे सदस्य अंग्रेज थे। जहाँ भी यह कमीशन गया, वहीं उसका बहिष्कार और अपमान करके रोष प्रकट किया गया। देशभक्तों ने पुलिस की लाठियाँ खाकर भी विरोध का स्वर तीव्र किया। लखनऊ में पुलिस की लाठियों से पं० जवाहरलाल नेहरू गिर पड़े, पन्त जी ने ऊपर गिरकर जवाहरलाल नेहरू जी को बचा लिया। लाहौर में कमीशन के विरोध में काले झण्डे लिये प्रदर्शन करते समय पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर पुलिस अफसर स्कॉट ने लाठियों का घातक प्रहार किया, जिससे कुछ ही दिनों के बाद उनका देहान्त हो गया। उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर पूरे देश में शोक की लहर व्याप्त हो गयी। इस समय चन्द्रशेखर आजाद पूर्वी भारत में और भगत सिंह पश्चिमी भारत में क्रान्ति की ज्वाला भड़का रहे थे।
क्रान्तिकारियों ने अत्याचारों का बदला लेने के लिए ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी’ का गठन किया। फिरोजाबाद के एक सम्मेलन में आजाद’ को आर्मी का कमाण्डर-इन-चीफ बनाया गया। लाहौर में चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और राजगुरु से मिलकर लाला लाजपत राय के हत्यारे पुलिस ऑफिसर स्कॉट को मारने की योजना बनायी। स्कॉट के स्थान पर साण्डर्स मारा गया। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत पर मानो बिजली गिर पड़ी। सरकार अपनी रक्षा के लिए असेम्बली में जनता रक्षा बिल’ लाना चाहती थी, जिसको बिट्ठलभाई पटेल ने मतदान करके पास नहीं होने दिया।
योजना के अनुसार 8 अप्रैल, 1928 ई० को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम गिरा दिया और भारतमाता की जय’ का नारा लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तार कराया। सरकार ने पंजाब की घटना का जुर्म भी क्रान्तिकारियों के मत्थे मढ़कर तीन क्रान्तिकारियों को फाँसी की सजा दे दी। अब संगठन का सारा भार ‘आजाद’ के कन्धों पर आ गया। वे सजा पा रहे मित्रों का उद्धार करने एवं शासन से अन्याय का बदला लेने की सोचने लगे। सरकार हर प्रकार से घोर दमन करने पर तुली हुई थी।