उच्च न्यायालय का संगठन
न्यायाधीशों की संख्या– संविधान के अनुसार न्यायाधीशों की संख्या निश्चित नहीं है। यह समय-समय पर बदलती रहती है। राष्ट्रपति इनकी संख्या राज्य के क्षेत्रफल, जनसंख्या तथा कार्यभार के आधार पर निश्चित करता है। उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश है तथा 160 पद न्यायाधीशों के लिए सृजित हैं। वर्तमान समय में 81 न्यायाधीश कार्यरत हैं। अन्य न्यायाधीश हैं, जिनमें 67 स्थायी तथा 14 अस्थायी हैं। राष्ट्रपति अतिरिक्त व अवकाश-प्राप्त न्यायाधीशों की भी नियुक्ति कर सकता है।
न्यायाधीशों की योग्यताएँ– राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो। वह भारत के किसी भी न्यायालय में कम-से-कम 10 वर्षों तक न्यायाधीश के पद पर कार्य कर चुका हो अथवा भारत के किसी एक या अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्षों तक लगातार अधिवक्ता रह चुका हो अथवा राष्ट्रपति की दृष्टि में विधिशास्त्र का उच्चकोटि का विद्वान हो तथा उसकी आयु 62 वर्ष से कम हो।
न्यायाधीशों की नियुक्ति– उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। ऊपर उल्लिखित योग्यता वाले किसी व्यक्ति की नियुक्ति उस प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश के पद पर की जा सकती है, परन्तु उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में राष्ट्रपति भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श लेता है।
न्यायाधीशों की शपथ- नियुक्ति के उपरान्त न्यायाधीशों को अपने पद पर निष्ठापूर्वक कार्य करने की शपथ लेनी पड़ती है। कर्तव्यों के परिपालन में योग्यता, निष्पक्षता एवं न्यायप्रियता के प्रति उनको सत्यव्रती एवं निष्ठावान् होना पड़ता है।
वेतन एवं भत्ते- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 2,50,000 मासिक वेतन तथा अन्य न्यायाधीशों को १ 2,25,000 मासिक वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त इन्हें मासिक भत्ते तथा प्रत्येक न्यायाधीश को नि:शुल्क निवासस्थान, यात्रा सम्बन्धी सुविधाएँ, सवेतन छुट्टियाँ और अवकाश ग्रहण करने पर पेंशन प्राप्त होती है। किसी न्यायाधीश के कार्यकाल में उसके वेतन, भत्तों आदि की कटौती नहीं की जा सकती है। कार्यकाल-साधारणत: प्रत्येक न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्य करता रहता है। यदि वह चाहे तो समय से पूर्व भी अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार अथवा अयोग्यता का आरोप लगाया जाए तो वह संसद द्वारा पारित एवं राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव द्वारा पदच्युत किया जा सकता है। राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानान्तरण भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में कर सकता है। यह कार्य वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है।
उच्च न्यायालय की शक्तियाँ/कार्य
उच्च न्यायालय को अग्रलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं–
1. न्याय-सम्बन्धी अधिकार- इस अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को अग्रलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं
· प्रारम्भिक अधिकार-उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की रक्षा, वसीयत, विवाह| विच्छेद, विवाह-विधि, कम्पनी कानून, उच्च न्यायालय की अवमानना आदि के मुकदमे सुनने का अधिकार प्राप्त है।
· अपील-सम्बन्धी अधिकार-उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध दीवानी, फौजदारी तथा माल के मुकदमों की अपीलें सुनता है। आयकर, बिक्रीकर तथा अन्य करों से सम्बन्धित अपीलें भी इसी न्यायालय में की जाती हैं।
· मौलिक अधिकारों की रक्षा-उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। इस उद्देश्य के लिए वह बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा तथा उत्प्रेक्षण लेख जारी कर सकता है।
· संविधान की रक्षा एवं व्याख्या-उच्च न्यायालय को संविधान की रक्षा तथा व्यवस्था करने का भी अधिकार प्राप्त है। यदि विधानमण्डल संविधान की किसी धारा के विरुद्ध कोई कानून पारित करता है तो उच्च न्यायालय उसे अवैध घोषित कर सकता है।
· मृत्यु-दण्ड की स्वीकृति-सत्र न्यायाधीश किसी व्यक्ति को तब तक मृत्यु-दण्ड नहीं दे सकता, जब तक वह उच्च न्यायालय से इसकी पूर्व स्वीकृति प्राप्त नहीं कर लेता है।
· अभिलेख न्यायालय का कार्य-उच्च न्यायालय अपने निर्णयों को प्रकाशित करवाता है, जो अधीनस्थ न्यायालयों में मान्य होते हैं। न्यायालय अपनी मान-हानि के लिए भी दण्ड दे सकता है।
2. प्रबन्ध-सम्बन्धी अधिकार- उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों के प्रबन्ध एवं देखभाल करने का भी अधिकार प्राप्त है। वह अपने अधीन किसी भी न्यायालय के किसी भी मुकदमे के कागजात मँगवाकर देख सकता है। न्यायालयों की कार्य-पद्धति एवं रिकॉर्ड रखने सम्बन्धी नियम बना सकता है। उच्च न्यायालय मुकदमे को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानान्तरित कर सकता है। उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के अधिकारियों की सेवा-शर्तों को निर्धारित करता है।