किसी क्षेत्र की जलवायु को छह प्राकृतिक कारक प्रभावित करते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-
(1) उच्चावचे – ऊँचे पर्वत शीतल व गर्म वायु को रोकने का कार्य करते हैं। यदि इन पर्वतों की ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के मार्ग को रोकने में सक्षम होते हैं तो वे उस क्षेत्र में वर्षा लाने में समर्थ होते हैं। पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।
(2) वायुदाब एवं पवनें – किसी क्षेत्र-विशेष को वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण की प्रवृत्ति को भी प्रभावित करता है।
(3) महासागरीय धाराएँ – समुद्र की ओर से स्थल की ओर आने वाली पवनों के साथ-साथ महासागरीय धाराएँ भी तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठण्डी जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर होती है, तब वह तट गर्म या ठण्डा हो जाएगा।
(4) सागर तट से दूरी – जैसे-जैसे स्थलीय क्षेत्र की सागर से दूरी बढ़ती जाती है, तो इसका समकारी प्रभाव घटने लगता है। इस तरह यह तापमान तथा वर्षा की प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं। महाद्वीपीय व्यवस्था का आशय है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी और सर्दी में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है।
(5) स्थलीय क्षेत्र की ऊँचाई – भारत के उत्तर में पर्वत हैं जिनकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली सर्द हवाओं को इस उपमहाद्वीप में आने से रोकता है यही कारण है कि मध्य एशिया की अपेक्षा भारत में ठंड अपेक्षाकृत कम होती है। जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचे स्थानों की ओर जाते हैं, वायुमंडल विरल होता जाता है तथा तापमान गिरने लगता है। इसलिए पहाड़ियाँ गर्मियों में अपेक्षाकृत ठण्डी होती हैं।
(6) अक्षांशीय स्थिति – पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है। तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है। कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंध में आता है। इसलिए भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं।