सोमा बुआ बड़ी जीवंत महिला हैं। जवान पुत्र की मृत्यु के सदमें से पति घर-बार छोड़कर संन्यासी हो गए, पर सोमा बुआ ने किसी तरह वह दुःख झेल लिया। बीस वर्ष से वह अकेलेपन का मानसिक कष्ट भोग रही हैं। अकेलेपन की इस असहनीय पीड़ा को ये आसपास रहनेवाले लोगों की खुशी अथवा गमी के आयोजनों में बिना बुलाए प्रेमपूर्वक शामिल हो जाती हैं।
केवल शामिल ही नहीं होती, इस प्रकार जी-तोड़ मेहनत करती हैं जैसे वह उन्हीं के घर का आयोजन हो। कई बार तो सोमा बुआ की कुशलता के कारण ही पड़ोसियों के घर होनेवाले आयोजन सफल होते हैं और आयोजकों की भद्द होने से बच जाती है। आयोजक उनका आभार मानते हैं और सोमा बुआ को भी अपनी प्रशंसा अच्छी लगती है। दूर के रिश्तेदारों से भी संबंध बनाए रखने में सोमा बुआ का हौसला देखते ही बनता है। परंतु रिश्तेदारों की बेरुखी उनके हौसले को पस्त कर देती है। सचमुच सोमा बुआ एक दयनीय पात्र है।