जिस प्रकार शारीरिक शक्ति का महत्त्व है, उसी प्रकार भावनाओं की शक्ति भी अपना महत्त्व रखती है। बलवान लोग शरीर से दुर्बल लोगों को अपने डंडे का जोर दिखाकर सताते हैं। धनवान लोग अपने धन के जोर पर निर्धनों पर जुल्म ढाते हैं। उन्हें यह पता नहीं कि दुर्बल की भावना दुर्बल नहीं होती और निर्धन की बददुआ में बहुत जोर होता है।
लुहार की धौंकनी की शक्ति कौन नहीं जानता? वह बनती तो मरे हुए पशु के चमड़े से, पर उसका जोर मरा हुआ नहीं होता। उसकी हवा से लोहा भी भस्म हो जाता है। इसी तरह दुर्बल की आह बड़े-बड़ों का सर्वनाश कर देती है। धौंकनी के रूप में वह लाचार पशु ही लोहे से बदला लेता है, जिसने लोहे के छुरे के रूप में उसे मारा था। इसी तरह दुर्बल की हाय भी अभिशाप बनकर अपने सतानेवालों से प्रतिशोध अवश्य लेती है। इसीलिए अपने शरीर या धन के बल पर किसी गरीब को सताना नहीं चाहिए।