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एक बाढ़पीड़ित की आत्मकथा.

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एक बाढ़पीड़ित की आत्मकथा

[परिचय -सुखमय जीवन – बाढ़ से उथल-पुथल -दर-दर की ठोकरें -अंतिम अभिलाषा]

जी हाँ, मैं एक बाढ़पीड़ित हूँ। नदी की वे राक्षसी लहरें, उसका बढ़ता हुआ पानी आज भी इन आँखों के आगे घूम रहा है। कौन जानता था कि जो नदी हमारे गाँव को अपने जल से जीवन देती थी, वही एक दिन गाँव का जीवन छीन लेगी!

गाँव में मेरा परिवार सबसे अधिक सुखी था। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण मेरा लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार से हुआ था। मेरी पाँचों उँगलियां घी में थीं। मैंने सपने में भी दु:ख नहीं देखा था। समय होने पर मेरा विवाह भी हो गया और रूप-गुण से संपन्न पत्नी ने मेरे घर और जीवन में और भी रोशनी बिखेर दी। फिर वह प्यारी प्यारी भोली सूरत का चाँद-सा शिशु ! खुशियों से भरा पासपड़ोस और मेरा वह सुखी गाँव! किसी अनिष्ट की कल्पना भी कैसे हो सकती थी?

किंतु प्रकृति हमारे इस सुखी जीवन को देख न सकी। भयंकर गर्मी के बाद वर्षा की शीतल बूंदें पड़ने लगीं। आषाढ़ बरसा, सावन बरसा। गाँव की नदी पागल हो गई। आज तक उसने सारे गाँव को अपना मधुर जल पिलाया था, पर आज वह स्वयं सारे गाँव को मानो निगल जाना चाहती थी। सारा गांव नींद की बेखबर दुनिया में डूबा हआ था। पूनम की रात थी, फिर भी बाहर भयंकर अंधेरा छा रहा था! भयंकर गर्जना के साथ मुसलाधार पानी बरस रहा था।

एकाएक हहर हहर का घनघोर शोर गूंज उठा। लोग उठ बैठे। मैंने बाहर आकर देखा तो नदी दरवाजे की मेहमान बनी हुई थी और घर में आने की तैयारी कर रही थी। पासपड़ोस का भी यही हाल था। अपनी जान लेकर हम सबने भागने की कोशिश की, पर भागकर जाते कहाँ ? आखिर, छत पर चढ़ गए। मैं ऊपर से नदी की विनाशलीला देख रहा था, इतने में छत का एक हिस्सा गिरने लगा। देखते ही देखते कौन जाने क्या हो गया। इसके बाद जब मेरी आँखें खुली तो मैंने खुद को नगर के एक अस्पताल में पाया।

मैं तो बच गया, लेकिन नदी सबको हड़प कर गई। अस्पताल से निकलकर मैं बाहर भटकने लगा। आँखों में माँ-बाप, पत्नी तथा पुत्र के चेहरे बसे हुए थे। मैंने उनकी बड़ी तलाश की, लेकिन कुछ पता न चला। पेट के लिए मैंने दर-दर की ठोकरें खानी शुरू कीं। तभी एक दिन अखबार में पढ़ा की सरकार बाढ़पीड़ितों को काम देने का प्रबंध कर रही है। इसी सिलसिले में मुझे एक फैक्टरी में काम मिल गया।

एक शाम को फैक्टरी से लौटते समय मेरी दृष्टि एक स्त्री पर पड़ी। पास पहुंचा तो देखा कि वह लक्ष्मी है – मेरी पत्नी लक्ष्मी! हम दोनों मिलकर बड़े प्रसन्न हुए। बाद में उसने भी अपनी दुःखभरी आपबीती सुनाई। हम दोनों की आँखें आंसुओं से छलक उठी। आज हम दोनों एक छोटे-से घर में रहते हैं और किसी तरह अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। पर गुजरे दिनों की याद अब भी हमारे दिल को रुला देती है।

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