नर्मदा नदी बोलती है
[प्रस्तावना – जन्म और बचपन – प्रपातों में मेरी छबि -गुजरात की भाग्यरेखा – महिमा -अभिलाषा]
आपने मुझे सही पहचाना। मैं ही नर्मदा नदी हूँ। भारत की जो सात प्रमुख नदियाँ हैं, उनमें एक मैं भी हूँ। मेरी धारा में आज भी पौराणिक काल के पावन स्वर सुने जा सकते हैं।
मेरा जन्म मेकल पर्वतश्रेणी के अमरकण्टक पर्वत पर के एक कुण्ड से हुआ। वहाँ से मैं उछलती-कूदती हुई आगे बढ़ती हूँ। शाल के सुन्दर वृक्ष मुझे छाया देते हैं। उनके पत्ते मुझे लोरियाँ सुनाते हैं। उन वृक्षों के बीच बहते हुए मुझे बड़ा आनन्द आता है। बड़े-बड़े पत्थरों और शिलाओं से टकराना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरे दो भाई हैं-विन्ध्याचल और सतपुड़ा, ये सदा मेरी रक्षा करते हैं।
कुण्ड से सात किलोमीटर चलने के बाद मैं साहस करके प्रपात के रूप में नीचे गिरती है। इस प्रपात का नाम कपिलधारा है। इसके नीचे दूधधारा प्रपात है। मेरी झर-झर ध्वनि बहुत दूर तक सुनाई देती – है। धुआँधार में मेरा उज्ज्वल रूप जिसने एक बार देख लिया, वह उसे कभी नहीं भल सकता। भेडाघाट में संगमरमर की नीली-पीली शिलाएँ दर्शकों का मन मोह लेती हैं। यहाँ लोग मुझ में नौकाविहार भी करते हैं। मेरे दोनों ओर घने जंगल हैं जिनमें आदिवासियों की बस्तियाँ हैं। आदिवासी लोग मुझे अपनी माता मानते हैं। मैं भी उन्हें स्नेह से सराबोर कर देती हूँ।
बहुत दूर तक मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बहती हुई मैं गुजरात में प्रवेश करती हूँ। मेरा कुल बहावमार्ग 1312 किलोमीटर का है। गुजरात में नवागाम के समीप मुझ पर 1210.2 मीटर लम्बा और 137.6 मीटर ऊँचा बाँध बनाया जा रहा है। इस बांध से तैयार होनेवाले सरोवर को ‘सरदार सरोवर’ नाम दिया गया है। इस बाँध के तैयार हो जाने पर मैं गुजरात की भाग्यरेखा बन जाऊंगी। मेरे पानी का लाभ कच्छ और सौराष्ट्र जैसे पानी की तंगीवाले लोगों को मिलेगा। गुजरात के भडौंच शहर के पास मैं अरबसागर में समा जाती हूँ।
भारत के पौराणिक ग्रंथों में मेरी बड़ी महिमा गाई गई है। मेरे तटों पर अनेक ऋषि-मुनियों ने तप किया है। आज भी मेरे किनारों पर अनेक मंदिर हैं। इनमें ओंकारनाथ का प्रसिद्ध मंदिर भी है। बहुत से लोग मेरी परिक्रमा करते हैं। अपने प्रति लोगों का प्रेम, उनकी श्रद्धा-भक्ति देखकर मेरा हृदय गद्गद् हो उठता है। मेरी यही इच्छा है कि मैं युग-युग तक इसी तरह बहती रहूं और लोगों की सेवा करती रहूँ।