बालगोबिन की मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई। ऐसा लेखक ने इसलिए कहा क्योंकि उनके आदर्शों के अनुरूप बालगोबिन ने किसी से अपनी सेवा नहीं करवाई। एक बार वे गंगा स्नान करने गए । उनका विश्वास स्नान करने पर नहीं संत-समागम और लोक-दर्शन पर अधिक था। किसी से भिक्षा नहीं लेते थे।
घर से खाकर जाते तो फिर घर पर आकर ही खाना खाते । इस बार जब वे लौटे तो उनकी तबियत खराब रहने लगी। दोनों समय स्नान करना, ध्यान गीत, खेतीबाड़ी देखना आदि के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। लोग उन्हें नहाने धोने से मना करते आराम करने को कहते पैर भगतजी हंसकर टाल देते ।
एक दिन शाम के समय जब वे गा रहे थे तो उनका स्वर बिखरा हुआ था, अगले दिन भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना । लोगों ने जाकर देखा, तो उनका पंजर पड़ा था। यों आखिरी साँस तक उन्होंने संगीत साधना की। ऐसा ही वे चाहते थे। उनकी आत्मा परमात्मा में सदा के लिए विलीन हो गई । इस प्रकार बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई थी।