आर्य प्रकृति प्रेमी थे । वे वृक्षों, पर्वतों, सूर्य, वायु, नदी, वर्षा आदि की पूजा-आराधना करते थे ।
- प्रत्येक प्राकृतिक देव की स्तुतियाँ (ऋचाओं) की रचना की थी ।
- समय बीतते वेदपठन प्रचलित किया, समान्तर में उससे धार्मिक विधियाँ शुरू हुई और बाद में यज्ञादि क्रियाएँ भारत में शुरू हुई ।