पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी उसके नीचे रहे एस्थेनोस्फियर के अर्ध-द्रवित चट्टानों के ऊपर तैर रही है ।
- पृथ्वी के गर्भ में होनेवाली किरणोत्सर्गी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप गरमी उत्पन्न होती है, जो द्रवित चट्टानों में संवहनिक तरंगें उत्पन्न करके भूपृष्ठ तरफ जाने का प्रयत्न करती है ।
- भू-कवच की तरफ उत्पन्न होनेवाली तरंगों द्वारा ऊपरी परत फटकर बड़े-बड़े टुकड़ों में विभाजित होती है, जिसे ‘मृदावरणीय प्लेटें’ कहते हैं ।
- कुछ जगहों पर ये प्लेटें एक-दूसरे से दूर हो रही है, जिन्हें ‘अपसारी प्लेट’ कहते हैं ।
- जबकि कुछ एकदूसरे से नजदीक आ रही हैं जिन्हें अभिसारी प्लेट कहते हैं ।
- अपसरण और अभिसरण की क्रिया में भूपृष्ठ पर स्तरभंग होता है और पर्त पड़ती है ।
- इन प्लेटों की गतिविधियों से लाखों वर्षों में महाद्वीपों के आकारों और परिस्थिति में परिवर्तन होता है ।
- एक-दूसरे से विपरीत दिशा में खिसक जाने की यह परस्पर प्रक्रिया ही पृथ्वी की सभी भूकंपीय और ज्वालामुखीय क्रियाओं के लिए जिम्मेदार है।
- सरकती या खिसकती हैं, वहाँ महाद्वीपों और महासागरों में दरारों का निर्माण करती है ।
- इन प्लेटों पर स्थित महाद्वीप निरंतर ख्रिसकते रहते हैं, इस प्रकार की प्लेटों को रूपांतरित प्लेट कहते हैं ।
- करोड़ों वर्ष पूर्व भारत भारत गोडवाना – लैण्ड भूखण्ड का भाग था ।
- इस विशाल भूखण्ड में आज दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका का समावेश होता है ।
- पाँच करोड़ वर्ष पूर्व इण्डो ऑस्ट्रेलियन प्लेट, यूरेशियन प्लेट से टकराई थी जिससे टेथिस सागर से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ था ।
- हिमालय के दक्षिण में रहे गर्त में नदियों की मिट्टी जमा होने से उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ था ।
- पठारी भाग के पश्चिमी क्षेत्र के निम्नजन होने से अरब सागर का निर्माण हुआ था ।