उपरोक्त कथन सत्य है, क्योंकि द्रव्य के बिना कोई भी प्रवृत्ति सम्भव नहीं । किसी भी धन्धे की स्थापना, विकास, विस्तार तथा आधुनिकीकरण के लिए द्रव्य की आवश्यकता पड़ती है । जिस तरह मानव शरीर में रक्त शरीर में सभी अंगों को सक्रिय रखता है । ठीक इसी प्रकार पूँजी/वित्त भी पूरी इकाई को गतिशील रखता है । इस तरह कहा जा सकता है कि धन्धाकीय इकाई में द्रव्य जीवनरक्त के समान है ।