सामान्यतः साझेदारी पेढ़ी की बही में दर्शायी गई मिलकतों और दायित्वों की वास्तविक किंमत उनकी बही किमत से अधिक या कम होती है । इसलिए निश्चित तारीख को साझेदारी पेढ़ी की मिलकतों और दायित्वों का वास्तविक मूल्यांकन अर्थात् पुनः मूल्यांकन ।
समय के साथ-साथ साझेदारी पेढ़ी में दर्शाई गई स्थाई मिलकते जैसे जमीन मकान की किमत बढ़ जाती है उसी प्रकार देनदार या हडियों पर अनामत की व्यवस्था करना रह जाता है इसलिए जब साझेदारी का पुनर्गठन होता है तब मिलकतों और दायित्वों का भी पुनः मूल्यांकन किया जाता है जिससे साझेदारी पेढी की वास्तविक परिस्थिति का ख्याल आता है। साझेदारी पेढ़ी में साझेदार की मृत्यु या निवृत्ति या साझेदार के प्रवेश के समय साझेदारी पेढ़ी की मिलकतों और दायित्वों का मूल्यांकन किया जाता है ।
संपत्ति और दायित्व के पुनः मूल्यांकन की हिसाबी असरों को लिखने के लिये पेढी की बही में खोलेजाने विशिष्ट खाते को पुनः मूल्यांकन खाता (Revaluation Account) कहते हैं ।
संपत्तियों की उधार शेष होने से अगर संपत्ति की किमत में वृद्धि हो तब संपत्ति खाते उधार और लाभ होने से पुनः मूल्यांकन खाते जमा किया जायेगा ।
दायित्व की जमा शेष होने से दायित्व की किमत में वृद्धि हो तब होनेवाली हानि । नुकसान पुनः मूल्यांकन खाते उधार होगी और दायित्व खाते जमा होगी । इससे विरुद्ध दायित्व की किंमत मे कमी हो तब लाभ होने से दायित्व खाते उधार और पुनः मूल्यांकन खाते जमा होगी।

अगर पुनः मूल्यांकन खाते की जमा बाकी आये तो वह लाभ कहलायेगा और अगर उधार बाकी आये तो वह हानि कहलायेगी । यह लाभ-हानि साझेदारों के पूँजी खाते उनके पुराने लाभ-हानि वितरण के प्रमाण में ले जायी जायेगी ।