प्रस्तुत दोहे में ज्ञान को हाथी और संसार को कुत्ते के साथ जोड़कर ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञानरूपी हाथी की सवारी सहजतारूपी कालीन डालकर करना चाहिए, यदि कुत्ता सपी संसार उसकी निंदा करता है तो उसे उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। यह दोहा छंद है। इसमें ‘हस्ती, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। दोहे की भाषा सधुक्कड़ी है। यहाँ सहज ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।