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भारत की वर्षाऋतु

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उत्तरी-पश्चिम के मैदानों में जून के प्रारम्भ होने तक हल्के दबाव की स्थिति अधिक तीव्र हो जाती है । यह स्थिति दक्षिणी गोलार्द्ध की पवनों को आकर्षित करने में सक्षम होती है । लम्बी समुद्री दूरी तय करके भारत के दक्षिण-पश्चिम हवाओं के आगमन के साथ ही मौसम में परिवर्तन आ जाता है । भारतीय प्रायद्वीप मानसूनी हवाओं को दो शाखाओं में बाँटता है । अरब सागरीय शाखा और बंगाल की खाड़ी की शाखा । अरब सागर की शाखा के मार्ग में पश्चिमी घाट अवरोधक बनता है और उसके वाताभिमुख ढाल पर अधिक वर्षा होती है । पश्चिम के घाट को पार करके ये हवायें दक्खन के पठार और मध्य प्रदेश में वर्षा अधिक करती है और बंगाल की खाड़ी से आनेवाली हवाओं के साथ मिल जाती है ।

आगे बढ़ने पर पश्चिमी राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में वर्षा करती है और बंगाल की खाड़ी की शाखा से मिलकर हिमालय के पश्चिमी क्षेत्रों में वर्षा करती है ।। बंगाल की खाड़ी की शाखा अराकन पर्वतमाला से टकराकर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी दिशा से बाँग्लादेश और पश्चिमी बंगाल में प्रवेश करती है । इसकी दो शाखाएँ हो जाती है – एक शाखा पश्चिम की ओर गंगा के मैदान को पार करके पंजाब तक जाती है, तो दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र की घाटी में उत्तर-पूर्वी दिशा में आगे बढ़कर खूब वर्षा करती है । खाँसी की पहाड़ियों में स्थित मोनसीनरम में विश्व की सबसे अधिक वर्षा होती है । भारत की मौसमी हवाएँ अनियमित और अनिश्चित होती हैं ।

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