जब सामान्य परिस्थिति में बहुत बड़े इलाके में बड़ी संख्या में लोग रोग का भोग बनते हैं तब यह कहा जाता है कि महामारी फैली है । इसमें रोग के कारण लोग अपनी जान गँवाते हैं । विषाणुजन्य रोगों के मरीजों की संख्या सामान्य रोगों की अपेक्षा तेजी से बढ़ती है । इनमें डेंग्यू, इ-बोला, स्वाइनफ्लू, इंफ्लूएंजा जैसे रोगों ने आजतक लाखों लोगों को अपना शिकार बनाया है ।
हालांकि पहले की तुलना में वर्तमान समय में वैज्ञानिक संशोधनों और रोगप्रतिकारक टीकों, इलाज के उन्नत उपकरण-उपायों से संशोधनों और प्रतिकार करने में सरलता हुई है, पर साथ ही नए-नए विषाणुजन्य रोग तथा परंपरागत दवाएँ असरकारक न बने ऐसे रोगों के प्रकोप का भय हमेशा मानव जाति पर मँडराता रहता है, यह भी एक कुरूप यथार्थ है । सितंबर, 1994 में सूरत शहर में प्लेग की महामारी और अभी-अभी 2015 में गुजरात और दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में स्वाइन फ्लू और डेंग्यू की महामारी को तंत्र द्वारा योग्य कदम उठाकर बड़ी जनहानि होने से रोकने की कोशिश हुई है ।