नदियां अपने साथ लाई हुई मृदा और मृत्तिका के बारीक कणों को मैदान में बिछा देती हैं। इस प्रकार से जो मृदा बनती है, उसे जलोढ़ मृदा कहते हैं। जलोढ़ मृदा बड़ी उपजाऊ होती है।
जलोढ़ मृदा के क्षेत्र- भारत में जलोढ़ मृदा गंगा-सतलुज के मैदान, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाओं, ब्रह्मपुत्र की घाटी और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में पाई जाती है।
गुण तथा लक्षण-
- यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है।
- यह मृदा कठोर नहीं होती। इसलिए इसमें आसानी से हल चलाया जा सकता है।
- वर्षा कम होने पर इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश की मात्रा कम हो जाती है और पोटाश तथा फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और तब यह कृषि योग्य नहीं रहती।