मन्नु भंडारी द्वारा रचित कहानी ‘दो कलाकार’ में अरुणा को एक समर्पित समाज-सेविका के रूप में चित्रित किया गया है। वह निर्जीव चित्र बनाने की अपेक्षा किसी का जीवन संवार देना अधिक उचित मानती है। चित्रा के प्रति उसके मन में मित्रता का भाव है। वह अध्ययन से भी अधिक दीन-दुखियों की सेवा को महत्त्व देती है। पर दुःख कातरता के कारण ही वह मृत भिखारिन के बच्चों का पालन-पोषण करती है। फुलिया दाई के बीमार बच्चे की सेवा करती है। वह अत्यंत भावुक भी है। इसी कारण दाई के बच्चे के मर जाने पर वह खाना भी नहीं खाती है। वह अपने कर्तव्य पालन में इतनी लीन रहती है कि वह चित्रा को विदा करने भी नहीं आ पाती। वह अपनी जैसी विचारधारा वाले मनोज को पति के रूप में पाना चाहती है क्योंकि वह मानती है कि जो व्यक्ति समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को जानता हो वही उसका पति बन सकता है। इस प्रकार अरुणा एक ऐसी आदर्शवादी युवती है जिसने अपना समस्त जीवन-सेवा में अर्पित कर दिया है।