छात्रावस्था में मित्रता करने की धुन सवार रहती है। हृदय इतना अधिक निर्मल होता है कि किसी को भी मित्र बनाने के लिए तैयार रहता है। किसी की सुंदरता, प्रतिभा, स्वच्छंद स्वभाव आदि से आकर्षित होकर उसे मित्र बनाने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है। मित्र बनाकर सब-कुछ बहुत लुभावना लगता है।