56- सराभा नगर,
लुधियाना।
दिनांक 25 अप्रैल, 20…..
प्रिय सखी मनप्रीत,
सस्नेह नमस्ते।
मैं पिछले दिनों अपने मामा जी के विवाह में दिल्ली गई हुई थी, इसलिए तुम्हारे पत्र का उत्तर नहीं दे सकी थी। यहाँ आकर देखा तो तुम्हारा एक और पत्र मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। मैं बिलकुल ठीक हूँ। चिन्ता मत करना। दिल्ली में विवाह ठीक हो गया था। वहाँ मुझे मैट्रो रेल में यात्रा करने का अवसर मिला था। बहुत मज़ा आया। तुम होती तो और भी अधिक आनन्द आता। मैटो रेलवे स्टेशन सड़क पर पल बनाकर ऊपर ज़मीन पर और ज़मीन के नीचे भी हैं। बड़े साफ-सुथरे स्टेशन और प्लेटफार्म थे। मैट्रो सारी की सारी वातानुकूलित थी। उसके दरवाजे अपने आप खुलते और बंद हो जाते थे। मेरी मैट्रो की यात्रा हवा में सड़कों पर बने पुलों और जमीन के अन्दर बनी सुरंगों में थी। सुरंग में तो अंधेरा हो जाता था परन्तु हवा में तो खिड़की से खूब अच्छे नज़ारे दिखाई देते थे जैसे उड़ते चले जा रहे हों। तुम भी कभी दिल्ली जाओ तो मैट्रो का आनन्द अवश्य लेना।
तुम्हारी अभिन्न सखी,
जसप्रीत।