201, माडल टाऊन,
लुधियाना।
20 मई, 20…..
प्रिय युद्धवीर,
अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। पूज्य माता जी की मृत्यु की दुःखदायी खबर पाकर आँखों के आगे अन्धेरा सा-छा गया। पैरों तेल ज़मीन खिसक गई। बार-बार सोचता हूँ कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं। अभी कुछ दिन की ही तो बात है, जब मैं उन्हें कोलकाता मेल पर चढ़ाकर आया था। न कोई दुःख न कोई कष्ट। उनका हँसता हुआ चेहरा अभी तक मेरे सामने मंडरा रहा है। उनके आशीर्वाद कानों में गूंज रहे हैं। उनकी मधुर वाणी समुद्र के समान गम्भीर और शान्त स्वभाव, सबके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार सदा स्मरण रहेगा।
प्रिय मित्र, भाग्य लेख मिटाई नहीं जा सकती। मनुष्य सोचता कुछ है, होता कुछ और है। ईश्वरीय कार्यों में कौन दखल दे सकता है। इसलिए धैर्य के सिवा और कोई चारा नहीं। मेरी यही प्रार्थना है कि अब शोक को छोड़कर कर्त्तव्य की चिन्ता करो। रोनेधोने से कुछ नहीं बनेगा। इससे तो स्वास्थ्य ही बिगड़ता है। अनिल और नलिनी को सान्त्वना दो। अन्त में मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें, तथा आप सभी को यह अपार दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
तुम्हारा अपना,
सुखदेव