राष्ट्रीय विद्यालय,
फिरोज़पुर।
18 जून, 20…..
प्रिय विनोद,
सप्रेम नमस्ते।
चिरकाल से आपका पत्र नहीं आया। क्या कारण है ? स्वास्थ्य तो ठीक है ? आपको याद होगा कि जब इस बार शिशिर के अवकाश में मैं आपके पास आया था, तो आपने ग्रीष्मावकाश एक साथ यहाँ बिताने का वचन दिया था। अब उस वचन को पूरा करने का समय आ गया है।
यहाँ मेरे पास अलग दो कमरे हैं। स्थान बिल्कुल एकान्त है। बिजली तथा पंखा लगा हुआ है। साथ ही खेलने के लिए अलग एक छोटा-सा क्रीडांगन है। यहाँ शाम को टेनिस खेला करेंगे और प्रातः काल दौड़ा करेंगे, जिससे हमारा शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनेगा।
मेरे अभिन्न मित्र राकेश ने भी साथ देने का वचन दिया है। उसके पिता जी जहां एक स्कूल के प्रधानाध्यापक हैं। उनसे भी समय-समय पर सहायता ली जा सकेगी। इस विषय में मैंने उनसे बात कर ली है। उन्होंने सहर्ष सहायता देना स्वीकार कर लिया है।
मेरे पिता जी तथा माता जी का भी आपको यहाँ बुलाने का आग्रह है। आशा है कि हमारा कार्यक्रम बहुत सुन्दर और रुचिकर होगा।
आप कब आने का कष्ट कर रहे हैं, लिखें। माता जी को प्रणाम ।
तुम्हारा मित्र,
राजीव