प्राणायाम (Pranayama)
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है, ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण।
प्राणायाम वह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती हैं।”
प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayama)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार हैं।
रेचक-सांस बाहर को छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर खींचते हैं तो इसे पूरक कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।
प्राण के नाम (Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—
1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बडी आन्तों में यही प्राण होता है। यह टट्टी, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और एडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
4. उदाना- गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदान कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
5. ध्यान-यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।
प्राणायाम के भेद (Kinds of Pranayama)
शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गए हैं, परन्तु प्राय: यह आठ होते हैं—
1. सूर्य-भेदी प्राणायाम
2. उजयी प्राणायाम
3. शीतकारी प्राणायाम
4. शीतली प्राणायाम
5. भस्त्रिका प्राणायाम
6. भ्रमरी प्राणायाम
7. मुर्छा प्राणायाम
8. कपालभाती प्राणायाम
प्राणायाम करने की विधि (Technique of doing Pranayama)
प्राणायाम श्वासों पर नियन्त्रण करने के लिए किया जाता है। इस क्रिया से श्वास अन्दर की ओर खींच कर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के बाद फिर छोड़ा जाता है। इस प्रकार सांस धीरे-धीरे नियन्त्रण करने के समय को बढ़ाया जा सकता है। अपनी दाईं नासिका को बन्द करके, बाईं से आठ गिनते समय तक सांस खींचो। फिर नौ और दस गिनते हुए सांस रोको। इससे पूरा सांस बाहर निकल जाएगा। फिर दाईं नासिका से गिरते हुए सांस खींचो। नौ-दस तक रोके। फिर दाईं नासिका बन्द करके बाईं से आठ तक गिनते हुए सांस बाहर निकालो तथा नौ-दस तक रोको।