प्रबंधन-कला एवं विज्ञान प्रबन्धन एक कला के रूप में-कला का अर्थ इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगत एवं दक्षतापूर्ण उपयोग करने से है। जार्ज आर. टैरी के शब्दों में, “चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।”
कला के आधारभूत लक्षण निम्नलिखित हैं-
- कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से हो।
- सैद्धांतिक ज्ञान का व्यक्तिगत योग्यता के अनुसार उपयोग किया जाये।
- कला व्यावहारिक होती है और रचनात्मकता पर आधारित होती है।
कला के उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबंधन एक कला है क्योंकि
(1) एक सफल प्रबंधक उद्यम उपक्रम के दिन-प्रतिदिन के प्रबंध में कला का उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है,
(2) प्रबंधन के कई सिद्धांत हैं, उनमें से कुछ सर्वव्यापी सिद्धांत भी हैं, जो उनको अधिकृत करते हैं। एक प्रबंधक इन वैज्ञानिक पद्धतियों, सिद्धांतों एवं ज्ञान को दी गई परिस्थिति, मामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है, और
(3) एक प्रबंधक सैद्धांतिक एवं प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्ति एवं दक्षता के अनुसार उपयोग करता है। प्रबंधन एक विज्ञान के रूप में-विज्ञान का अर्थ एक क्रमबद्ध अध्ययन से है जो कारण एवं परिणाम में संबंध स्थापित करता है और अवलोकन तथा परीक्षणों पर आधारित होता है।
विज्ञान के आधारभूत लक्षण निम्नलिखित हैं-
- विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन समूह है। इसके सिद्धांत कारण एवं परिणाम (Reason and Result) के बीच में संबंध आधारित है।
- वैज्ञानिक सिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है। इसके पश्चात् नियंत्रित परिस्थितियों में बार-बार परीक्षण कर उसकी जाँच की जाती है।
- वैज्ञानिक सिद्धांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं।
विज्ञान के उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबंधन एक विज्ञान है क्योंकि
- प्रबंधन भी एक क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है। इसके अपने सिद्धांत एवं नियम हैं जो समय-समय पर विकसित हुए हैं,
- प्रबंधन के सिद्धांत, विभिन्न संगठनों में बार-बार के परीक्षण तथा अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं, जैसे-एफ.डब्ल्यू. टेलर का वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत एवं हेनरी फेयोल का कार्यात्मक प्रबंधन के सिद्धांत आदि,
- प्रबंधन के सिद्धांत, विज्ञान के सिद्धांतों के समान विशुद्ध नहीं होते हैं और न ही उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इसलिए इनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जाता है।
किन्तु यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। निष्कर्षतः प्रबंधन को कला एवं विज्ञान दोनों माना जाता है क्योंकि प्रबंधन में कला एवं विज्ञान दोनों के लक्षण विद्यमान हैं और ये प्रबंधन को पूर्णता देने का कार्य भी करते हैं। इस संबंध में रॉबर्ट एन. हिलकर्ट ने कहा कि, “प्रबंधन क्षेत्र में कला एवं विज्ञान दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” अथवा “एक सफल उद्यमी को अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करना होता है।” स्पष्ट करें। कथन का स्पष्टीकरण “एक सफल उद्यमी को अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करना होता है।” इस कथन के स्पष्टीकरण में सर्वप्रथम यह कहा जा सकता है कि एक सफल उद्यमी वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो व्यावसायिक जोखिमों एवं अनिश्चितताओं का सामना करते हुए नये उद्यम/उद्योग की स्थापना करता है और सामयिक निर्णय लेता है।
द्वितीय स्पष्टीकरण यह है कि उसको अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करने के लिए उसमें निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-
(1) शारीरिक एवं मानसिक गुण: इसमें परिश्रमी, उत्तम स्वास्थ्य एवं कार्य करने की शक्ति, उत्साह, साहस, लगन एवं दूरदर्शिता, आत्मविश्वास, प्रभावी व्यक्तित्व, सतर्कता, विवेक एवं कल्पनाशक्ति आदि शामिल हैं।
(2) व्यावसायिक गुण: इसमें व्यावसायिक अभिरुचि, प्रबन्धन योग्यता, तकनीकी ज्ञान, राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों का ज्ञान, वैधानिक ज्ञान, बाजार दशाओं का ज्ञान, व्यावसायिक योग्यता तथा शिक्षण-प्रशिक्षण और लेखाविधि का ज्ञान आदि शामिल हैं।
(3) सामाजिक गुण: इसमें मिलनसार, निष्ठावान, व्यवहार कुशल, आदर भाव और सहयोगी आदि शामिल हैं।
(4) नैतिक गुण: इसमें उत्तम चरित्र तथा ईमानदारी आदि शामिल हैं।