टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत टेलर द्वारा दिये गये वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांतों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है।
(1) विज्ञान, न कि अंगूठा राज्य - इस सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध में प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण पद्धतियों के आधार पर किया जाता है और अंगूठा राज्य का बहिष्कार किया जाता है। इसके अंतर्गत विद्यमान परम्परागत तथा रूढ़िवादी पद्धतियों का परीक्षण किया जाता है और यदि वे विज्ञान की कसौटी पर सही उतरती हैं तो उनका उपयोग किया जाता है अन्यथा उनको समाप्त करके उनके स्थान पर नवीन पद्धतियों को विकसित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वैज्ञानिक प्रवन्धन परम्परा अथवा अंधविश्वास पर आधारित न होकर विज्ञान पर आधारित है। वैज्ञानिक पद्धति का विकास प्रयोगों द्वारा किया जाता है।
(2) संगति, न कि असंगति - वैज्ञानिक प्रबंध का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि इसके अंतर्गत संस्था के विभिन्न स्तरों पर पाई जाने वाली असंगतियों अर्थात् मेल न खाने वालों ‘या प्रतिकूल स्थितियों को समाप्त करके उन्हें अनुकूल बनाया जाता है। टेलर असंगतियों को दूर करने के इतने प्रबल समर्थक थे कि उन्होंने मशीनों की एकरूपता के संबंध में कहा था कि विभिन्न किस्मों, जिनमें अधिकांश उच्च कोटि की कुछ दूसरी कोटि की और तीसरी कोटि को क्यों न हों, की मशीनें लगाने की अपेक्षा यह कहीं अधिक अच्छा है कि एक ही प्रकार की मशीनें, चाहे वे निम्न कोटि की ही क्यों न हों, लगाई जायें। इससे कार्य परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन करना सरल हो जाता है तथा कार्य निष्पादन के दुर्बल स्थलों का तुरंत पता लग जाता है।
(3) सहयोग, न कि व्यक्तिवाद - वैज्ञानिक प्रबंध का तीसरा सिद्धांत यह है कि इसके अंतर्गत व्यक्तिवाद के स्थान पर सहयोग की भावना को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। यह सहयोग न केवल कर्मचारियों में आपस में ही बल्कि कर्मचारियों और मालिकों में भी हो। टेलर ने कर्मचारियों तथा मालिकों के मध्य सहयोग स्थापित करने के लिए मानसिक क्रांति की आवश्यकता पर बल दिया है। मानसिक क्रांति से आशय है कि प्रबंधक अपना शोषणपूर्ण, पक्षपातपूर्ण एवं अमानवीय व्यवहार छोड़कर श्रमिकों के साथ मानवतापूर्ण एवं शोषण-रहित तथा पक्षपातरहित व्यवहार करें और उन्हें अधिकाधिक सुविधाएँ देने का प्रयत्न करें। मालिकों को भी यह समझना चाहिए कि श्रमिक भी कारखाने के अनिवार्य अंग हैं, अत: बिना उनके सहयोग के कारखाना चलाना संभव नहीं है।
(4) सीमित उत्पादन के स्थान पर अधिकतम उत्पादन - वैज्ञानिक प्रबंध का चौथा सिद्धांत अधिकतम उत्पादन पर बल देता है। यह सीमित उत्पादन की विचारधारा का विरोधी है। उनके अनुसार जितना अधिक उत्पादन होगा उतना ही अधिक लाभ होगा। जितना अधिक लाभ होगा मालिकों एवं श्रमिकों दोनों को उतना ही अधिक लाभों में से हिस्सा मिलेगा। जब दोनों को भरपुर लाभ मिलेगा तो लाभ के वितरण संबंधी विवाद स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे।
(5) प्रत्येक व्यक्ति का चरम कुशलता एवं संपन्नता तक विकास - वैज्ञानिक प्रबंध में प्रत्येक श्रमिक को उसकी अधिकतम कुशलता एवं संपन्नता तक पहुँचाने का भरसक प्रयास किया जाता है। इस दृष्टि से श्रमिकों की भर्ती वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर की जाती है। तत्पश्चात् उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके पश्चात् कार्य करने की उचित एवं सुविधाजनक परिस्थितियों के अंतर्गत श्रम-विभाजन के आधार पर समूचे कार्य का बँटवारा किया जाता है। ऐसा हो जाने पर जो व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है, उसे वही कार्य दिया जाता है तथा उन्हें प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति से पारिश्रमिक दिया जाता है। साथ में पदोन्नति के अवसर भी प्रदान किए जाते हैं। ऐसा करने से श्रमिकों में अधिकतम संपन्नता आती है।