प्रभावी संचार के लिए आम बाधाएँ:
- संचार में अनिच्छा यह देखने में आया है कि कर्मचारी या अधीनस्थ अपने अधिकारियों से संचार के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। ऐसी दशा में संचार प्रभावी नहीं हो पाता है।
- सत्ता के सामने चुनौती का भय यदि कोई अधिकारी यह अनुमान लगाता है कि कोई विशेष सूचना या संचार उसकी सत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है, तो वह उस संचार को या तो रोक सकता है अथवा प्रतिबंध लगा देता है।
- अधिकारी का अपने अधीनस्थों में विश्वास का अभाव-यदि अधिकारी को अपने अधीनस्थों की कुशलता में विश्वास नहीं होता है अथवा वह आश्वस्त नहीं होता है तो वह उनके विचार तथा सुझाव को नहीं मानता है।
- नियम एवं अधिनियम का सख्त होना संगठन में सख्त नियम एवं अधिनियम संचार के लिए आम बाधा है। इसके अलावा निर्दिष्ट माध्यमों से संचार देरी से क्रियान्वित हो सकते हैं।
- संगठनिक नीति यदि संगठनिक नीति अस्पष्ट और संचार के स्वतंत्र प्रवाह में सहायक नहीं है तो प्रभावी संचार में बाधा आ सकती है।
- संगठनिक सुविधाएँ यदि संचार के लिए स्पष्ट, निरन्तर एवं समय पर सुविधाएँ उपलब्ध न हो तो प्रभावी संचार में बाधा आती है। यहाँ सुविधाओं में शिकायत पेटी, सुझाव पेटी, निरंतर सभाएं, कार्य-संचालन में पारदर्शिता और सामाजिक तथा सांस्कृतिक जनसमूह आदि शामिल हैं।
- संगठन-संरचना में जटिलता किसी संस्था में प्रबंध के स्तरों की संख्या अधिक होती है तो वहाँ न केवल संचार में देरी होती है, अपितु उसमें विकार भी आ सकता है। इसका कारण स्पष्ट है कि सूचनाएँ विभिन्न स्तरों से गुजरती हैं, उतनी ही क्षय होती है।
- संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति, अपर्याप्त शब्द भंडार के कारण, गलत शब्दों के प्रयोग से और आवश्यक शब्दों के प्रयोग न करने के कारणों से हो सकती है तो प्रभावी संचार के लिए आम बाधा है।
- विभिन्न अर्थों सहित संकेतक-एक शब्द के बहुत से अर्थ भी प्रभावी संचार में बाधक होते हैं अर्थात् प्राप्तकर्ता को शब्द के उसी अर्थ को समझना है जो प्रेषक उसे समझाना चाहता (पारस्परिक समझ) है।
- त्रुटिपूर्ण रूपान्तर या अनुवाद-सामान्यतः संचार अंग्रेजी एवं हिन्दी भाषा में किया जाता है। यदि संचार का मसौदा अंग्रेजी में किया जाता है तो कर्मचारियों को समझाने के लिए इसका रूपान्तर हिन्दी भाषा में करना आवश्यक है। यदि अनुवादक दोनों ही भाषाओं में पारंगत नहीं है तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
- अविश्वास संचारक एवं संदेश प्राप्तकर्ता के मध्य अविश्वास प्रभावी संचार के लिए एक बाधक है क्योंकि एक-दूसरे के संदेश को उसके मूल अर्थों में नहीं समझ पाएंगे।
- असामयिक मूल्यांकन यह भी देखा गया है कि कुछ स्थितियों में लोग संदेश के अर्थ का पहले ही मूल्यांकन कर लेते हैं, इसके पहले कि प्रेषक-अपना संदेश पूर्ण करे। ऐसी स्थिति में संचार कितना ही महत्त्वपूर्ण हो, वह प्रभावी नहीं हो सकता है।
प्रभावी संचार की आम बाधाओं को दूर करने के उपायों के निम्नलिखित सुझाव दे सकते हैं:
- प्रबंधक को न केवल एक अच्छा श्रोता होना चाहिए अपितु उसको ऐसा संकेत भी देना चाहिए कि वह अपने अधीनस्थों वसुनने में रुचि ले रहा है और उनके हितों को ध्यान में रख रहा
- प्रबंधकों को अपना संचार अधीनस्थों की शिक्षा एवं उनकी समझ के स्तर के अनुसार ही व्यवस्थित करना चाहिए।
- किसी भी समस्या को अधीनस्थों को बताने से पहले अधिकारी को स्वयं ही सभी परिप्रेक्ष्य से समस्या स्पष्ट होनी चाहिए।
- नियमित रूप से अधीनस्थों को दिये गये आदेशों का न केवल अनुसरण होना चाहिए अपितु उनका पुनरावलोकन भी होना चाहिए।
- सामान्यतः संचार की आवश्यकता वर्तमान प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पड़ती है। इसलिए सामंजस्य बनाये रखने के लिए संचार करते समय संस्था के भविष्य के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- संदेश को वास्तविक रूप में संचालित करने से पूर्व, यह बेहतर है कि संचार की योजना अन्य संबंधित लोगों को सम्मिलित करके बनानी चाहिए।
- अन्य लोगों को संदेश व्यक्त करते समय यह बेहतर है कि जिनके साथ संचार करना है, उन लोगों की रुचियों तथा आवश्यकताओं की जानकारी होनी चाहिए।
- संदेश की विषय-वस्तु, शैली एवं भाषा-प्रयोग ऐसा होना चाहिए, जो संदेश प्राप्तकर्ता की समझ में आ जाये और सुनने वाले की भावनाओं को ठेस भी न लगे।
- संचार की प्रक्रिया को प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर सुधारा जाना चाहिए ताकि संदेश प्रेषक अधिक प्रतिक्रियात्मक बन सके।
- किसी भी समस्या का अध्ययन पूरी गहराई से होना चाहिए, तथा उसे इस प्रकार रखना चाहिए कि अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से प्रेषित हो।