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मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकता को समझाइए।

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मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकताएँ मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकताओं को रेखाचित्र एवं उनका विवेचन कर इस प्रकार समझाया जा सकता है

अहंकी निम्नस्तरीय शारीरिक PM आत्म-विकास स्वयं अनुभूति, स्वतः विकास, की आवश्यकताएँ। स्वसन्तुष्टि एवं स्व-परिपूर्णता आत्म-सम्मान, आत्म विश्वास, 6/] आवश्यकताएँ प्रशंसा, मान्यता, स्वतन्त्रता एवं पद सामाजिक आवश्यकताएं प्यार, मिकता, आत्मीयता, अपनत्व सुरक्षात्मक शारीरिक नौकरी में स्थायित्व, चिकित्सा लाभ, दुर्घटना आवश्यकताएँ मानसिक लाभ, बीमा लाभ, पेन्शन एवं प्रॉविडन्ट फण्ड रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, हवा एवं यौन सम्पर्क आवश्यकताएँ है।

(1) शारीरिक आवश्यकताएँ अथवा जीवन निर्वाह आवश्यकताएँ (Psysiological Needs):

जीवन-निर्वाह आवश्यकताएँ मास्लो की आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में सबसे प्रथम स्तर की आवश्यकताएँ हैं। ये मनुष्य एवं पशु दोनों की होती हैं। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, हवा एवं यौन सम्पर्क आदि प्रमुख हैं। ये आवश्यकताएँ मनुष्य को सर्वाधिक अभिप्रेरित करती हैं। मनुष्य को इन आवश्यकताओं की अनुभूति बार-बार होती है। मनुष्य को एक बार इन आवश्यकताओं से संतुष्ट हो जाने का अर्थ यह नहीं होता कि ये आवश्यकताएँ सदैव के लिए समाप्त हो गई या फिर उत्पन्न नहीं होंगी। इन आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर ही मनुष्य की अन्य आवश्यकताएँ जन्म लेती हैं। लेकिन इस संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि ज्योंही ये आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, त्योंही ये मनुष्य को अभिप्रेरित नहीं करती क्योंकि मेकग्रेगर ने कहा कि, “एक संतुष्ट आवश्यकता व्यवहार के लिए अभिप्रेरक नहीं है।”

(2) सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ (Safety Needs):

प्रथम आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् मानव सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की संतुष्टि की ओर अपना ध्यान केंद्रित करता है। ये आवश्यकताएँ मूलतः आत्मसुरक्षा से संबंधित होती हैं। इनमें आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक, जैसे-हत्या और खतरा, नौकरी में स्थायित्व, चिकित्सा लाभ, दुर्घटना लाभ, पेंशन, बेरोजगारी, वृद्धावस्था एवं प्रॉवीडेन्ट फण्ड आदि आवश्यकताएँ हैं। इनके अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक सुरक्षात्मक आवश्यकताओं में वर्तमान एवं भावी पर्यवेक्षकों का त्याय, कार्य की स्वतंत्रता एवं नवीन परिवर्तनों में समायोजन आदि ऐसी आवश्यकताएँ भी हैं, जिनकी मानव संतुष्टि चाहता है।

(3) सामाजिक आवश्यकताएँ (Social Needs):

मानव की जीवन-निर्वाह और सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाने के पश्चात् सैजिक आवश्यकताएँ उसके व्यवहार को प्रभावित करने वाली सबसे प्रमुख घटक होती हैं। इन आवश्यकताओं में प्यार, मित्रता, आत्मीयता एवं अपनत्व आदि हैं, जिनमें मनुष्य अपने संगठन का सम्मानित सदस्य बनना चाहता है। इसके अतिरिक्त इसमें ये आवश्यकताएँ भी सम्मिलित हैं कि वह अन्य व्यक्तियों से मदद की आशा करता है और संगठन में अपनी स्थिति को देखना चाहता है। यदि इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं होती है, तो मनुष्य के कार्य में बाधक, विरोधी एवं असहयोगी बन जाता है। अतः मनुष्य को इन आवश्यकताओं से संतुष्टि प्राप्त होना आवश्यक है।

(4) अहम् या स्वाभाविक आवश्यकताएँ (Egoistic Needs):

आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में व्यक्ति की सामाजिक आवश्यकताएं संतुष्ट हो जाने पर अहं या स्वाभाविक आवश्यकताएँ जन्म लेती हैं। इनमें आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, प्रशंसा, सभ्यता, स्वतंत्रता एवं पद, प्रमुख बनने की इच्छा, प्रतिष्ठा पाने की इच्छा तथा ख्याति प्राप्त करने की इच्छा आदि प्रमुख हैं। मनुष्य की इन सभी आवश्यकताओं की संतुष्टि होना जरूरी नहीं है। इन आवश्यकताओं में कुछ तो जीवनपर्यन्त सन्तुष्ट ही नहीं हो पाती। लेकिन कुछ अवश्य संतुष्ट हो जाती हैं। यद्यपि संगठन कर्मचारियों की इन आवश्यकताओं की संतुष्टि पर्याप्त महत्व रखती है।

(5) आत्म-विकास आवश्यकताएँ (Self Actualisation Needs):

मास्लो की आवश्यकता की क्रमबद्धता में मानव की आत्मविकास आवश्यकताएँ अंतिम स्तर पर हैं। प्रत्येक व्यक्ति में यह इच्छा होती है कि वह जितना बनने की योग्यता चाहता है, वह उसके योग्य सब कुछ बन जाये। इसी इच्छा को हम आत्मविकास की आवश्यकता कहते हैं। इसके अंतर्गत स्वयं अनुभूति, स्वत: विकास, स्व-संतुष्टि एवं स्व-परिपूर्णता आदि आवश्यकताएँ सम्मिलित हैं। ये आवश्यकताएं सर्वश्रेष्ठ प्रकार की होती हैं तथा क्रम में भी सबसे ऊपर होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति आत्मविकास की सीढ़ी तक नहीं पहुंच पाता है। इसलिए ये आवश्यकताएँ प्रायः दबी होती हैं। इन्हें जाग्रत करने के लिए व्यक्ति को सजगता रखनी होती है एवं प्रयास करने पड़ते हैं। मास्लो ने इन आवश्यकताओं को जीवन लक्ष्य माना है क्योंकि ये व्यक्ति की परम अभिव्यक्ति है जो एक व्यक्ति बन सकता है। इस संबंध में डॉ. मास्लो ने कहा कि, “एक संगीतकार को संगीत बनाना चाहिए, एक कलाकार को पेन्ट करना चाहिए, एक कवि को लिखना चाहिए, यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है। एक व्यक्ति जो भी हो सकता है, उसे वह होना चाहिए। इस आवश्यकता को आत्मविकास की आवश्यकता कह सकते हैं।”

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