गैर-कांग्रेसवाद- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कुछ समाजवादी नेताओं ने देश में कांग्रेस विरोधी अथवा गैर-कांग्रेसवाद का राजनैतिक माहौल बनाने का प्रयत्न किया। देश में सारा राजनैतिक माहौल और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हुई स्थिति देश की दलगत राजनीति से अलगथलग नहीं रह सकती थी। विपक्षी दल जनविरोध की अगुवाई कर रहे थे तथा सरकार पर दबाव डाल रहे थे। कांग्रेस की विरोधी पार्टियों ने अनुभव किया कि उनके वोट बैंट जाने के कारण ही कांग्रेस सत्तासीन है। गैर-कांग्रेसवाद की नीतियाँ-जो दल अपने कार्यक्रमों या विचारधाराओं के धरातल पर एक-दूसरे से एकदम अलग थे, वे सभी दल एकजुट हुए तथा उन्होंने कुछ राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया और अन्य राज्यों में सीटों के मामले में चुनावी तालमेल किया।
इन दलों को लगा कि इंदिरा गांधी की अनुभवहीनता तथा कांग्रेस की अंदरूनी उठा-पटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ लगा है। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने इस रणनीति को ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नाम दिया। उन्होंने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ के पक्ष में सैद्धांतिक तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस का शासन अलोकतांत्रिक तथा गरीब लोगों के हितों के विरुद्ध है। अतः गैर-कांग्रेसी दलों का एक साथ आना आवश्यक है, जिससे गरीबों के हक में लोकतंत्र को वापस लाया जा सके। गठबंधन की राजनीति-व्यापक जनअसंतोष तथा राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इसी माहौल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए फरवरी 1967 में चौथे आम चुनाव हुए।
कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। आठ राज्यों में विभिन्न गैर-कांग्रेसी दलों की गठबंधन सरकार बनी। इस प्रकार सन् 1967 ई. के चुनावों से गठबंधन की परिघटना सामने आई। चूँकि किसी पार्टी को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया तथा गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। अधिकांश मामलों में ऐसी सरकार के घटक दल विचारधारा की दृष्टि से एकदूसरे से अलग थे।
उदाहरण के लिए- बिहार में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार में दो समाजवादी पार्टियाँ-एसएसपी तथा पीएसपी शामिल थीं। इसके साथ इस सरकार में वामपंथी सीपीआई तथा दक्षिणपंथी-जनसंघ भी शामिल थे। पंजाब में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार को ‘पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट’ की सरकार कहा गया। इसमें उस समय के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल संत ग्रुप तथा मास्टर ग्रुप शामिल थे। इसके साथ सरकार में दोनों साम्यवादी दल सीपीआई तथा सीपीआई (एम), एसएसपी, रिपब्लिकन पार्टी तथा भारतीय जनसंघ भी सम्मिलित थे।