भक्ति आन्दोलन- जब कभी भी हिंदू धर्म में आंतरिक जटिलताएँ बढ़ी तब-तब प्रतिक्रिया स्वरूप धर्म सुधार आंदोलन या धार्मिक क्रांतियाँ हुईं। धर्म और समाज को सुधारने के ये प्रयास प्राचीनकाल में जैन व बौद्ध धर्म के रूप में, मध्यकाल में भक्ति परम्परा के रूप में तथा 19वीं सदी में धार्मिक पुनर्जागरण के रूप में हमारे सामने आये। धार्मिक, सामाजिक प्रतिक्रिया स्वरूप उपजे इन धार्मिक आंदोलनों ने हिन्दू धर्म और समाज में हर बार नई चेतना, नई शक्ति और नवजीवन का संचार करके उसे और अधिक पुष्ट और सहिष्णु बनाने में मदद दी। इस दृष्टि से समय, काल, राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन भारतीय संस्कृति की एक बहुपक्षीय और महान घटना थी।
भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताओं निम्नलिखित हैं-
- भक्ति आंदोलन के संतों ने मूर्ति पूजा का खण्डन किया।
- इसके कुछ संतों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
- भक्ति आंदोलन के नेता सन्यास मार्ग पर बल नहीं देते थे। उनका कहना था कि यदि मानव का आचार-विचार एवं व्यवहार शुद्ध हो, तो वह गृहस्थ जीवन में रहकर भी भक्ति कर सकता है।
- भक्ति आंदोलन के संत समस्त मनुष्य मात्र को एक समझते थे। उन्होंने धर्म, लिंग, वर्ण व जाति आदि के भेदभाव का विरोध किया।
- यह आंदोलन मुख्य रूप से सर्वसाधारण का आंदोलन था। इसके समस्त प्रचारक जनसाधारण वर्ग के ही लोग थे।
- भक्ति आंदोलन के प्रचारकों ने अपने विचारों का प्रचार जनसाधारण की भाषा तथा प्रचलित साधारण बोली में किया।
- यद्यपि यह आंदोलन विशेषरूप से धार्मिक आंदोलन था, लेकिन इसके अनेक प्रवर्तकों ने सामाजिक क्षेत्र में विद्यमान कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की।
- भक्ति आंदोलन के समस्त नेता विश्व बंधुत्व की भावना एवं एकेश्वरवाद के समर्थक थे।
- भक्ति आंदोलन के संतों ने धार्मिक अन्धविश्वासों तथा बाह्य आडम्बरों का विरोध कर हिन्दू धर्म को सरल एवं शुद्ध बनाने का प्रयत्न किया। उन्होंने चरित्र की शुद्धता एवं आचरण की पवित्रता पर बल देकर सच्चे हृदय से भक्ति करना ही मुक्ति का साधन बताया।
- भक्ति आंदोलन की मूल अवधारणा एक ईश्वर पर आधारित थी। भक्ति आंदोलन के अधिकतर संतों ने ईश्वर एक है, इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
- भक्ति आंदोलन सामाजिक सद्भाव का आंदोलन था, इसमें हिन्दु-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता पर जोर दिया गया था।
- भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि-संतों में कबीर, नानक, रैदास, मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास, संत दादूदयाल आदि के नाम प्रमुख हैं।