राजा साहब की अनुमति मिलते ही बाजे बजने लगे। दर्शकों में उत्तेजना फैल गई। मेले के दुकानदार दुकानें बन्द करके कुश्ती देखने आ पहुँचे। ढोल की आवाज़ सुनाई दी। लुट्टन को चाँद सिंह ने कसकर दबा लिया। लुट्टन की गर्दन पर कुहनी डालकर चाँद उसे चित करने की कोशिश में लगा था।
लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटी जा रही थी। सभी चाँद सिंह को शाबाशी दे रहे थे। अचानक ढोल की आवाज़ आई – ‘धाक धिना, तिरकट – तिना’ अर्थात् ‘दाँव काटो बाहर हो जा।’ और लुट्टन ने चाँद की पकड़ से छूटकर उसकी गर्दन पकड़ ली।
उसने चालाकी से दाँव और जोर लगाकर चाँद को जमीन पर दे मारा। तभी ढोल की आवाज ‘धिना – धिना’ अर्थात् ‘चित करो’ सुनकर उसने अंतिम जोर लगाकर चाँद सिंह को चित कर दिया।