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निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

जिस गाँव में भद्रमथ का शिलालेख हो सकता है वहाँ संभव है और भी शिलालेख हों। अतः मैं हजियापुर जो कौशाम्बी से केवल चार-पाँच मील था, गया और मैंने गुलजार मियाँ के यहाँ डेरा डाल दिया। उसके भाई को, जो म्युनिसिपैलिटी में नौकर था, साथ ले लिया था। गुलजार मियाँ के मकान के ठीक सामने उन्हीं का एक निहायत पुख्ता सजीला कुँआ था। चबूतरे के ऊपर चार पक्के खम्भे थे जिनमें एक से दूसरे तक अठपहल पत्थर की बँडेर पानी भरने के लिये गड़ी हुई थी। सहसा मेरी दृष्टि एक बँडेर पर गई जिसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक ब्राह्मी अक्षरों में एक लेख था।

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संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ब्रजमोहन व्यास जी की आत्मकथा के अंश ‘कच्चा चिट्ठा’ से ली गई हैं। यह पाठ हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अंतरा भाग – 2’ में संकलित है।

प्रसंग – हजियापुर गाँव में भद्रमथ का शिलालेख मिला, यह जानकर व्यास जी ने सोचा कि यहाँ और भी शिलालेख मिल सकते हैं। यह सोचकर उन्होंने गाँव में गुलजार मियाँ के घर डेरा डाल दिया। उनके कुँए की एक बँडेर ब्राह्मी अक्षरों से लिखी मिली जिसे उन्होंने अपने संग्रहालय के लिए निकलवा लिया।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब हजियापुर में भद्रमथ का शिलालेख मिला तभी उनको लगा कि यहाँ पुरातात्विक महत्त्व के और भी शिलालेख हो सकते हैं। उनकी खोज में लेखक ने हजियापुर गाँव में जो कौशाम्बी से चार – पाँच मील की दूरी पर है, गुलजार मियाँ के यहाँ डेरा डाल दिया। उसके साथ गुलजार मियाँ का छोटा भाई था जो इलाहाबाद नगरपालिका में नौकर था।

गुलजार मियाँ के घर के ठीक सामने एक पुराना पक्का कुँआ था जिस पर चार खम्भे थे और चारों खम्भों को आपस में बँडेरों से जोड़ा गया था। इनमें से एक बँडेर पर व्यास जी (लेखक) को ब्राह्मी अक्षरों में एक सिरे से दूसरे सिरे तक कुछ लिखा हुआ दिखा।

यह देखकर उनकी तबियत फड़क उठी और गुलजार मियाँ ने वह बँडेर संग्रहालय के लिये तुरंत निकलवा दी। पुरातात्विक महत्त्व के उस शिलालेख (बँडेर, जिस पर लेख अंकित था) को संग्रहालय के लिए पाकर व्यास जी को लगा कि भद्रमथ का जो शिलालेख उन्हें नहीं मिल पाया था, उसकी क्षतिपूर्ति हो गई और यहाँ आना सार्थक हो गया।

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