पानवाले ने हालदार साहब को बताया कि कैप्टन एक चश्मे बेचने वाला है। उसके पास जब कोई ग्राहक मूर्ति पर लगे फ्रेम जैसा फ्रेम माँगने आता है तो वह उसे मूर्तिवाला फ्रेम देकर उसकी जगह दूसरा फ्रेम लगा देता है। अब हालदार साहब को असली बात समझ में आई। इसके पीछे कैप्टन चश्मेवाले की मजबूरी यह थी कि उसके पास सीमित मात्रा में फ्रेम थे और नेताजी की मूर्ति को वह बिना चश्मे के नहीं रहने देना चाहता था।