सन्दर्भ तथा प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक क्षितिज में संकलित कवि जयशंकर प्रसाद की रचना ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इस अंश में कवि अपनी मधुर स्मृतियों के बारे में सोचकर अपने मन को कष्ट नहीं देना चाहता है।
व्याख्या- कवि अपने मित्रों से कहता है -कहीं ऐसा न हो कि मेरे रस से शून्य, खाली गागर जैसे जीवन के बारे में पढ़कर तुम स्वयं को ही अपराधी समझने लगो। तुम्हें ऐसा लगे कि तुमने ही मेरे जीवन से रस चुराकर अपनी सुख की गगरी को भरा है। कवि कहता है कि मैं अपनी भूलों और ठगे जाने के विषय में बताकर अपनी सरलता की हँसी उड़ाना नहीं चाहता। मैं अपने प्रिय के साथ बिताए जीवन के मधुर क्षणों की कहानी किस बल पर सुनाऊँ ? वे खिल-खिलाकर हँसते हुए की गई बातें अब एक असफल प्रेमकथा बन चुकी हैं। उन भूली हुई मधुर-स्मृतियों को जगाकर मैं अपने मन को व्यथित करना नहीं चाहता।।