किशोर प्रायः नशीले द्रव्यों में मदिरापान, धूम्रपान व तम्बाकू तथा नशीली दवाओं का सेवन करते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है
1. मदिरापान:
शराब में व्यग्रता/आकुलता को कम करने एवं संवेगों को कम करने एवं संवेगों को शांत करने की क्षमता होती है। अत: कुछ किशोर दैनिक जीवन की चुनौतियों में असफल होने पर अपनी कमियों को छुपाने के लिए मदिरा का। सहारा लेने लगते हैं। शराब के नशे में किशोर का स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं रहता तथा वह नकारात्मक व्यवहार;
जैसे – गाली – गलौज, मारपीट व बड़ों के साथ अभद्रता कर बैठता है।
2. धूम्रपान व तम्बाकू सेवन:
तम्बाकू सिगरेट, गुटखा व पान आदि के रूप में उपयोग में लाया जाता है। किशोरों द्वारा धूम्रपान व तम्बाकू का सेवन पुरुषत्व के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इनकी आदत किशोरों में मित्र मंडली के दबाव में प्रारम्भ होती है। तम्बाकू में उपस्थित हानिकारक निकोटीन शरीर को हानि पहुँचाता है तथा कैंसर की संभावनाओं को भी बढ़ाता है।
3. नशीली दवाएँ:
आजकल किशोरों में नशीले पदार्थों जैसे ब्राउन शुगर, गाँजा, अफीम, चरस आदि का सेवन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। किशोर इन नशीले पदार्थों को प्राप्त करने के लिए कई बार असामाजिक वे आपराधिक कार्य करने लगते हैं। एक बार इनकी आदत पड़ने पर उसे छोड़ना अत्यन्त कष्टदायक होता है। आज के बदलते परिवेश में न केवल हमारे किशोर बल्कि किशोरियाँ भी इन मादक द्रव्यों के चंगुल में फँस जाती हैं।
किशोर – किशोरियों को चाहिए कि वे इन नशीले पदार्थों से होने वाले दुष्प्रभावों को जानें, अपने आत्मविश्वास को जागृत करें तथा सकारात्मक रवैया अपनाते हुए अपनी इच्छाशक्ति का सदुपयोग कर जीवन की विविध चुनौतियों का सामना करें। इनके उपयोग से किशोरों की शारीरिक शक्तियाँ नष्ट होने लगती हैं। ये नशीली दवाएँ महँगी भी होती हैं। फलस्वरूप व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो जाती है।