कुण्ठा को दबाव का आंतरिक स्रोत माना जाता है। किसी लक्ष्य निर्देशित क्रिया में अवरोध या रुकावट को कुंठा कहते हैं। जब व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसकी पूर्ति के साधन अर्थात् लक्ष्य के बीच किसी कारण अवरोध आ जाता है या जब कोई उपर्युक्त लक्ष्य की अनुपस्थिति हो जाती है। इस कारण वह अपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता है, तो उसमें कुंठा उत्पन्न हो जाती है। ऐसे कई कारक हैं जो व्यक्ति को कुंठित करते हैं; जैसे-पूर्वाग्रह, कार्य असंतोष, दैहिक विकलांगता तथा अत्यधिक दोष भाव आदि इसके अन्तर्गत आते थे।
इन सभी कारकों से कुंठाओं की उत्पत्ति होती है। जब व्यक्ति इनसे सही तरीके से निपटने में असफल हो जाता है तब कुंठा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है फिर इनसे ही दबाव का जन्म होता है।