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उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है ?

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उदारीकरण का रोजगार के प्रतिमानों पर प्रभाव उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को निम्न प्रकार प्रभावित किया है।

(1) सुरक्षित अर्थात् सरकारी क्षेत्र में नौकरियों व रोजगार में कमी आना तथा असुरक्षित रोजगार का बढ़ना - सन् 1990 के दशक से सरकार ने उदारीकरण की नीति को अपनाया है। निजी कम्पनियाँ, विशेष रूप से विदेशी फर्मों को उन क्षेत्रों में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जो पहले सरकारी क्षेत्र के लिए आरक्षित थे, जैसे - दूरसंचार, नागरिक उड्डयन एवं ऊर्जा आदि। इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकारी क्षेत्र में सुरक्षित रोजगार व नौकरियाँ कम हो रही हैं और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व प्राइवेट फर्मों की असुरक्षित नौकरियाँ बढ़ रही हैं।

(2) विदेशी वस्तुओं के आयात से नौकरियों व रोजगार में कमी आना- उदारीकरण के कारण विदेशी उत्पाद अब आसानी से भारतीय बाजारों व दुकानों में उपलब्ध हो रहा है, जबकि पहले इस प्रकार का माल भारतीय कारखानों में ही बन रहा था। प्रतिस्पर्धा में भारतीय कम्पनियाँ दम तोड़ रही हैं। फलतः इन क्षेत्रों में लगे लोगों को अपनी नौकरियों व रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है।

(3) भारतीय कम्पनियों का बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अधिग्रहण से रोजगार में कमी आना- उदारीकरण के परिणामस्वरूप बहुत सी भारतीय कम्पनियों को बहुउद्देशीय कम्पनियों ने खरीद लिया है। उदाहरण के लिए, कोका कोला ने आज कई परम्परागत भारतीय पेयों का स्थान ले लिया है। इससे इन परम्परागत भारतीय कम्पनियों में रोजगार कम हुआ है।

(4) स्वयं रोजगार को बढ़ावा - उदारीकरण की नीति के कारण उद्योगों को खोलने के लिए अब लाइसेंस वांछित नहीं रहा है। इस नीति ने निश्चित रूप से स्व - रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया है।

(5) छोटे दुकानदारों व व्यापारियों का रोजगार समाप्त होना - विदेशी कम्पनियों तथा बड़े व्यापारिक घरानों ने खुदरा क्षेत्र में पदार्पण करते हुए बड़े - बड़े मॉल खोल दिये हैं, जिनके कारण बहुत छोटे खुदरा व्यापारी, दुकानदार, हस्तशिल्प विक्रेता तथा हॉकर्स अपने रोजगार खो रहे हैं।

(6) बाह्य स्रोतों से कार्य करवाना तथा कर्मचारियों की संख्या में कटौती - अधिकांश कर्मचारियों ने उदारीकरण के प्रभावस्वरूप, अपने स्थायी कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर दी है, वे बाह्य स्रोतों से सस्ती दर पर कार्य करवाते हैं।उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारत में बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार है। यहाँ तक कि छोटी संख्या के स्थायी सुरक्षित रोजगार भी अनुबंधित कामगारों के कारण असुरक्षित होते जा रहे हैं।

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