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विभिन्न मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स की व्याख्या करें।

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विभिन्न मनी मार्केट इंस्ट्रमेंट्स-

1. राजकोष बिल ( ट्रेजरी बिल)- राजकोष बिल मूलतः एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले _भारत सरकार के द्वारा ऋणदान के रूप में दिया जाने वाला एक लघुकालिक प्रपत्र होता है। इन्हें शून्य कूपन बंधपत्र भी कहा जाता है। इन्हें केन्द्रीय सरकार के पक्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निधि की लघुकालिक जरूरतों के लिए जारी किया जाता है। ये राजकोष बिल एक वचनपत्र के स्वरूप में जारी किये जाते हैं। ये उच्च तरल तथा सुनिश्चित वापसी माल लक्ष्य प्राप्ति युक्त तथा अदायगी के जोखिम से नगण्य होते हैं। ये अंकित मूल्य से कम मूल्य पर जारी किये जाते हैं और इनका भुगतान उसके बराबर तक किया जाता है। राजकोष बिल 25 हजार रुपये के न्यूनतम मूल्य और इसके बाद बहुगुणन में प्राप्त होता है।

2. वाणिज्यिक पत्र- वाणिज्यिक पत्र एक अल्पकालिक आरक्षित वचनपत्र होता है, जो बेचान के द्वारा हस्तान्तरणीय एवं परक्राम्य (बेचनीय) है तथा परिपक्व अवधि के बाद एक सुनिश्चित (स्थिर) आन्तरण (हस्तान्तरण) या सुपुर्दगी होती है। ये बड़ी एवं उधार पात्रता कम्पनियों के द्वारा अल्पकालिक बाजार दर से कम दर पर निधि (पूँजी) उगाहने के लिए जारी किये जाते हैं। इनकी परिपक्वता अवधि सामान्यत: 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है। वाणिज्यिक पत्र को बट्टे के साथ बेचा एवं सममूल्य पर मोचित किया जाता है। इनको जारी करने का उद्देश्य अल्पकालिक मौसमी एवं कार्यपूंजी की जरूरतों हेतु निधि उपलब्ध कराना था। कम्पनियाँ इस प्रपत्र को सेतु वित्तीयता (ब्रिजोफाइनेन्स) जैसे उद्देश्य के लिए उपयोग करती हैं।

3. शीघ्रावधि द्रव्य- यह एक लघुकालिक माँग पर पुनर्भुगतान वित्त है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है तथा अन्तर बैंक अन्तरण के लिए उपयोग किया जाता है। वाणिज्यिक बैंकों को एक न्यूनतम रोकड़ शेष अनुरक्षित करना होता है। जिसे रोकड़/नकदी आरक्षण या नकदी रिजर्व अनुपात कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर नकदी रिजर्व अनुपात परिवर्तित करता रहता है जो बाद में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों की उपलब्ध निधियों को प्रभावित करता है। शीघ्रावधि द्रव्य वह उपाय है जिसके द्वारा एक दूसरे से नकदी उधार लेकर नकदी आरक्षण अनुपात अनुरक्षित रखने में सक्षम होते हैं। शीघ्रावधि ऋण पर चुकाया जाने वाले ब्याज को शीघ्रावधि दर के नाम से जाना जाता है। यह दर दिनप्रतिदिन और कभी-कभी घण्टों के अनुसार बदलती है। शीघ्रावधि द्रव्य में वृद्धि अन्य स्रोतों से वित्त जैसे वाणिज्यिक पत्रों या बचत प्रमाणपत्रों से जुटाते हैं।

4. बचत प्रमाणपत्र- बचत प्रमाणपत्र (सी.डी.) आरक्षित, पारक्रम्य (बेचनीय), धारक रूप में अल्पकालिक प्रपत्र आदि वाणिज्यिक बैंकों तथा विकास वित्त संस्थानों द्वारा जारी किये जाते हैं। ये वैयक्तिक रूप से उद्यमों/निगमों तथा कम्पनियों को उनकी कठिन द्रवता की अवधि के दौरान तब जारी किये जा सकते हैं जब बैंकों में बचत दर कम हो, लेकिन कर्ज के लिए माँग उच्च हो। यह अल्प अवधि के लिए भारी मात्रा में द्रव्य संचारित करने में सहायक होते हैं।

5. वाणिज्यिक बिल- यह विनिमय का एक बिल है, जो व्यावसायिक फर्मों की कार्य पूँजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। यह एक अल्पकालिक, पारक्रम्य (बेचनीय) स्वयं द्रवीकृत प्रपत्र है जो एक फर्म की उधार बिक्री को वित्तीयन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जब माल उधार पर बेचा जाता है तब खरीददार देनदार बन जाता है जिसे भविष्य में एक निश्चित तिथि पर भुगतान करना है। विक्रेता उस विशिष्ट या निश्चित तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है या विनिमय के एक बिल का उपयोग करे। माल का विक्रेता बिल का आहरण करता है और खरीददार (अदाकर्ता/आदेशिती) इसे स्वीकार करता है। स्वीकार किये जाने पर यह बिल एक विक्रय (मार्केटबल) प्रपत्र बन जाता है और इसे व्यापारिक बिल कहा जाता है। यदि विक्रेता को बिल के परिपक्व होने से पहले निधियों की जरूरत पड़ती है तो एक बैंक द्वारा ये बिल बट्टा कटाकर लिये जा सकते हैं। जब एक व्यापारिक बिल बैंक द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो इसे एक वाणिज्यिक बिल के नाम से जाना जाता है।

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