भारत में पूँजी बाजार के सुधार कुछ वर्षों पहले तक पूँजी बाजार अर्थात् शेयर बाजार में व्यापार एक सार्वजनिक चिल्लाहट (शोर मचाकर) या नीलामी प्रणाली के द्वारा किया जाता था किन्तु अब इसकी जगह ऑनलाइन स्क्रीन आधारित इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली ने ले ली है। अब लगभग सभी शेयर बाजार इलेक्ट्रॉनिक बन गये हैं। इसीलिए अब शेयर बाजार के पटल से ब्रोकर्स (दलालों) के कार्यालयों में स्थानान्तरित हो गये हैं जहाँ पर समूचा व्यापार कम्प्यूटर के माध्यम से सम्पन्न होता है। पहले दलाल शेयर बाजार द्वारा स्वीकृत (स्वामित्व), नियन्त्रित तथा प्रबन्धित होते थे। दलालों द्वारा शेयर बाजारों के स्वामित्व एवं प्रबन्धन प्रायः दलालों और उनके ग्राहकों के बीच हितों के झगड़े का रूप ले लेता था। फलतः डिम्युचुअलाइजेशन (सह-पारस्परिकता) की नींव पड़ी। डिम्युचुअलाइजेशन स्वामित्व को अलग करती है और सदस्यों के व्यापार अधिकारों से शेयर बाजार को नियन्त्रित करते हैं। यह शेयर बजार एवं दलालों के बीच परस्पर झगड़ों को घटाता है और निजी लाभ हेतु दलालों द्वारा शेयर बाजार के इस्तेमाल को भी घटाता है।
शेयर बाजार में किसी भी कम्पनी की प्रतिभूतियाँ तभी व्यापार में आ सकती हैं, जब वे वहाँ सूचीबद्ध' या 'भावबद्ध' या 'कोटेड' हों। कम्पनी को अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कर पाने के लिए एक कठोर सेट पत्रों को भरना होता है। यह सनिश्चित करता है कि इसके बाद अंशधारियों के हितों को औचित्यपूर्ण ढंग से देखा गया है। शेयर बाजार में लेन-देन या तो नकदी आधार पर या आगे ले जाना आधार पर किया जाता है। पूँजी बाजार में व्याप्त कुरीतियों, निवेशकों के बढ़ते अविश्वास तथा निवेशकों की बढ़ती शिकायतों की स्थिति से निपटने के लिए तथा पूँजी बाजार के वातावरण में पारदर्शिता लाने के लिए व निवेशकों का विश्वास लौटाने के लिए केन्द्रीय सरकार ने 'सेबी' का निर्माण 1988 में किया। इसे पूर्ण स्वायत्तता 30 जनवरी, 1992 को प्रदान की गई। अब डिम्युचुअलाइजेशन के अन्तर्गत स्टॉक एक्सचेन्ज के प्रबन्ध तथा नियन्त्रण को पृथक् हाथों में दिया गया। अंश प्रमाणपत्रों के खोने, फटने अथवा हस्तान्तरण प्रक्रिया में होने वाली देरी को दूर करने के लिए 'डी मेटरलाइजेशन ऑफ सिक्यूरिटिज' किया गया।
भारत में आज स्टॉक एक्सचेंजों के प्रभावी नियमन करने में कम्पनी मामलों का विभाग, आर्थिक मामलों का विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक तथा सेबी महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
देश में आज दो डिपोजिटरीज हैं जिनमें कम्पनियों की प्रतिभूतियों को अभौतिक रूप में परिवर्तित करवाया जा सकता है।
एन.एस.ई. तथा बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर डेरिवेटिव का कारोबार होता है। आज देश में 132 प्रतिभूति प्रबन्धक (Portfolio Managers) पंजीकृत हैं, जो निवेशकों को धन के निवेश में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता कर रहे हैं।
देश में 130 पंजीकृत मर्चेण्ट बैंकर्स हैं जो प्रतिभूतियों के निर्गमन में कम्पनियों की सहायता कर रहे हैं। 57 पंजीकृत अभिगोपक हैं जो कम्पनियों की प्रतिभूतियों के अभिगोपन का कार्य कर रहे हैं। भारत में अब 80 भारतीय साहस पूँजीकोष (Indian Venture Capital Funds) पंजीकृत हैं जो नये साहसियों को कम्पनियाँ स्थापित करने में वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। देश में अब T+2 का रोलिंग सैटलमेन्ट लाग है। अतः निवेशकों को सौदा करने के दिन से अगले दो दिनों बाद विक्रय राशि या प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी प्राप्त हो सकती है। T+1 रोलिंग सैटलमेन्ट भी शीघ्र लागू होने की सम्भावना है।
अब भारत में वीसैट (VSAT) टेक्नोलॉजी से 266 शहरों में काम होता है। इन शहरों में कुल 2,737 वीसैट लगे हुए हैं। अब राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज कई प्रकार से सूचकांकों का प्रकाशन कर रहे हैं। इनमें बी.एस.ई. का 'सैन्सेक्स' तथा एन.एस.ई. को निफ्टी सबसे अधिक प्रचारित एवं मान्यता प्राप्त है।
विगत कुछ वर्षों से पूँजी बाजार में प्रमाण-पत्र विहीन व्यापार शुरू हो चुका है। ओटीसी एक्सचेंज तो पत्र या प्रमाणपत्र विहीन या प्रलेख विहीन, परिधि रहित इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज है जिसमें सतत संचार माध्यमों से प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय की राष्ट्रव्यापी व्यवस्था संचालित की जाती है।