प्रबन्ध का महत्व: संस्था चाहे छोटी हो या बड़ी, व्यावसायिक हो अथवा गैर-व्यावसायिक, बिना सुचारु प्रबन्ध के अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकती है। इसी प्रकार चाहे कोई देश हो या कोई भी आर्थिक प्रणाली हो, सभी में समान रूप से प्रबन्ध का महत्व है। व्यवसाय में प्रबन्ध का और भी अधिक महत्व है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है जिसमें विभिन्न साधनों के प्रयोग से उत्पादन और विपणन किया जाता है। इसके समुचित प्रबन्ध के द्वारा ही व्यावसायिक क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में उर्विक का कथन प्रबन्ध के महत्व को प्रदर्शित करता है, “कोई सिद्धान्त, वाद अथवा राजनीतिक कल्पना सीमित मानवीय तथा भौतिक साधनों के उपयोग से एवं कम प्रयत्न द्वारा अधिक उत्पादन सम्भव नहीं बना सकते। यह केवल प्रभावी प्रबन्ध से ही सम्भव है। इस अधिक उत्पादन के आधार पर जन-साधारण के उच्च जीवन स्तर, अधिक आराम तथा अधिक सुविधाओं की नींव रखी जा सकती है।”
आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रबन्ध के महत्व को निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
(i) लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक – प्रबन्ध का कार्य संगठन के सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों को समान दिशा देना है। अत: यह संगठन के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
(ii) क्षमता वृद्धि में सहायक – प्रबन्धक का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियुक्तिकरण एवं नियन्त्रण के द्वारा लागत को कम करके उत्पादकता को बढ़ाना होता है। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।
(iii) गतिशील संगठन का निर्माण – सामान्यतया देखने में आता है कि किसी भी संगठन में कार्यरत् लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि परिवर्तन होने पर उन्हें परिचित एवं सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं चुनौतीपूर्ण पर्यावरण में जाना होता है। प्रबन्ध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक करता है जिससे संगठन अपनी प्रतियोगी क्षमता को बनाये रखकर गतिशील बना रहता है।
(iv) व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक – अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व के माध्यम से प्रबन्ध व्यक्तियों की टीम भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता करता है। इससे वे अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों को भी प्राप्त कर सकते हैं।
(v) समाज के विकास में सहायक – प्रबन्ध श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध कराने, रोजगार के अवसर देने, नयी तकनीकों को अपनाने, बुद्धि एवं विकास के रास्ते पर चलने में सहायक होता है। इससे समाज के विकास में सहायता मिलती है।
(vi) कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सहायक – आज के समय में प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र प्रतिस्पर्धी हो गया है। यह प्रतिस्पर्धा केवल आन्तरिक उपक्रमों द्वारा ही नहीं बल्कि बाह्य उपक्रमों से भी पैदा हुई है। ऐसी अवस्था में उपक्रम को प्रतिस्पर्धी बनाना प्रबन्ध का महत्वपूर्ण कार्य है। प्रतिस्पर्धी का सामना करने के लिए आवश्यक है कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद निर्माण और कीमत भी तुलनात्मक रूप में कम हो। यह प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
(vii) देश की समृद्धि के लिए – जब प्रबन्ध न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाता है, उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करता है, श्रम समस्याओं को सुलझाते हैं एवं समाज के विभिन्न अंगों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को भली-भाँति निभाते हैं, तो निश्चय ही राष्ट्र समृद्धि की ओर अग्रसर होता है। विश्व के अनेक राष्ट्रों ने अल्पावधि में जो प्रगति की है, वह इसका उदाहरण है।