“ग्राहक बाजार का राजा होता है” ग्राहक की संतुष्टि ही व्यवसाय की सफलता का आधार है। सरकार भी उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण विभिन्न कानूनों द्वारा करती है। ग्राहक की उपेक्षा व्यवसाय के लिये घातक सिद्ध होती है।
ऐसी स्थिति में ग्राहकों के प्रति कुछ विशेष दायित्व बनते हैं जिन्हें व्यवसाय प्रबन्ध को पूरा करना चाहिये जो निम्न प्रकार हैं –
- ग्राहकों की रुचियों व आवश्यकताओं का अध्ययन करना
- उचित मूल्य पर वस्तु एवं सेवाएँ उपलब्ध करवाना
- प्रमाणित किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध करवाना
- अनुचित प्रवृतियाँ – कम नापतोल, झूठ, दिखावटी, जमाखोरी, मिलावट आदि को त्यागना
- झूठे, अनैतिक विज्ञापन व भ्रामक प्रचार न करना
- विक्रय के समय दिये गये आश्वासनों एवं वायदों को पूरा करना
- विक्रय उपरान्त सेवायें प्रदान करना
- उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करना
- आचार संहिताओं का पालन करना
- बाजार उपभोक्ता एवं वस्तुओं की उपयोगिता के बारे में शोध करना
- वस्तुओं की उपयोग विधियों आदि के बारे में ग्राहकों को जानकारी देना
- उपयोगी जीवनकाल व जीवन स्तर में वृद्धि करने वाली वस्तुओं का निर्माण करना
- कृत्रिम कमी उत्पन्न नहीं करना व पूर्ति को नियमित बनाए रखना
- उचित समये व उचित मूल्य पर उपभोक्ता को वस्तुएँ उपलब्ध करवाना
- ग्राहकों से मधुर एवं स्थायी संबंध स्थापित करना।