उत्पादन सम्भावना वक्र की अवधारणा (Concept of production Possibility Curve) – डोमिनिक सेलवेटोर के अनुसार–“वह वक्र जो यह बताता है कि एक देश उपलब्ध श्रेष्ठतम तकनीकी व अपने सभी संसाधनों का उपयोग करते हुए वस्तुओं के वैकल्पिक संयोगों के द्वारा जिन्हें वह उत्पादित कर सकता है, उत्पादन सम्भावना वक्र या वस्तु रूपान्तरण वक्र कहलाता है। अन्य शब्दों में एक फर्म को यह निश्चित करना होता है कि उसे विभिन्न पदार्थों की कितनी मात्रायें उत्पादित करनी चाहिये। अब हम उस फर्म की स्थिति पर विचार करेंगे जो केवल दो पदार्थ उत्पादित करती है। इसका कारण यह है कि दो पदार्थों की स्थिति की व्याख्या ‘उत्पादन सम्भावना वक्र की सहायता से की जा सकती है।
उत्पादन सम्भावना वक्र का विचार निम्न सारणी की सहायता से समझा जा सकता है –

यहाँ पर यह मान लिया गया है कि फर्म के पास साधनों की दो मात्रा हैं तथा वह दी हुई तकनीकी के अन्तर्गत कार्य कर रही है। इन मान्यताओं को स्वीकार करते हुए ऊपर दी हुई सारणी X तथा Y वस्तुओं के विभिन्न वैकल्पिक उत्पादन सम्भावनाओं को प्रदर्शित करती है।
यदि फर्म द्वारा उत्पादन के सभी साधन Y वस्तु के उत्पादन में लगाये जाते हैं तो Y वस्तु की 15 इकाईयाँ उत्पादित की जाती हैं इसी प्रकार यदि फर्म सम्पूर्ण साधन X वस्तु को उत्पादित करने के लिये लगाती है तो वह X वस्तु की 5 इकाईयाँ उत्पादित करती है किन्तु ये केवल दो चरम उत्पादन सम्भावनायें हैं। इन दोनों के मध्य अन्य अनेक उत्पादन सम्भावनायें जैसे – B, C, D, E, है। उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि साधनों की मात्रा दी होने पर एवं फर्म एक वस्तु की अधिक मात्रा का उत्पादन केवल दूसरी वस्तु के उत्पादन में कटौती द्वारा ही कर सकती है।
सारणी की वैकल्पिक उत्पादन सम्भावनाओं को निम्न चित्रे द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है –

AF वक्र उत्पादन सम्भावना वक्र कहलाता है जो दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को प्रदर्शित करता है जिन्हें फर्म दिये हुए साधनों की मात्रा से उत्पादित कर सकती है। उत्पादन सम्भावना वक्र यह दिखाता है कि साधनों के दिये होने पर, एक वस्तु के उत्पादन में वृद्धि करने पर अन्य वस्तु के उत्पादन में कमी आवश्यक हो जाती है।