(अ) मुद्रा के सहायक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के सहायक कार्यों से आशय उन कार्यों से है जो मुद्रा के प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता करते हैं।
ये कार्य निम्नलिखित हैं –
1. मूल्य संचय का साधन (Means of Store of Value) – वस्तुओं के नाशवान होने के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में आये को संचित करने में कठिनाई होती थी लेकिन मुद्रा में टिकाऊपन होने के कारण इसने इस कार्य को सरल बना दिया है। आजकल कोई भी व्यक्ति मुद्रा के रूप में धन को संचित करके रख सकता है।
2. भावी भुगतान का आधार (Basis of deferred Payment) – मुद्रा ने भावी भुगतानों को सरल एवं सम्भव बनाया है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में ज्यादा स्थिरता होती है। आजकल ज्यादातर व्यापारिक लेन-देन उधार होते हैं। मुद्रा के रूप में इसको भविष्य में एक मुश्त अथवा किश्तों के रूप में प्राप्त किया जा सकता है तथा उधारी की राशि पर ब्याज भी वसूला जा सकता है।
3. क्रय-शक्ति का हस्तांतरण (Transfer of purchasing Power) – मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी संचित क्रय शक्ति अथवा मूल्य को दूसरे स्थान पर अथवा दूसरे व्यक्ति को आसानी से हस्तांतरित कर सकता है। ऐसा करने से उसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में यह सुविधा नहीं थी।
(ब) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money) – मुद्रा द्वारा कुछ ऐसे कार्य भी किए जाते हैं। जो मुद्रा को और भी सुविधाजनक एवं उपयोगी बना देते हैं। इन कार्यों को आरम्भिक कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –
1. सामाजिक आय का वितरण (Distribution of Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण के कार्य को सरल करती है। आजकल बड़े पैमाने पर उत्पादन होने के कारण उत्पादन प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। उत्पादन कार्य करने के लिए उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को उचित अनुपात में जुटाना होता है तथा उत्पादने से प्राप्त आय को इन साधनों में बाँटना होता है। यह कार्य मुद्रा के माध्यम से ही सम्भव है। उत्पत्ति के साधनों के योगदान के अनुपात में ही मुद्रा द्वारा उनमें आय का वितरण किया जाता है।
2. साख का आधार (Basis of Credit) – बड़े पैमाने के उत्पादन के इस दौर में बैंकों का कार्यक्षेत्र काफी बढ़ गया है। उनके द्वारा अनेको रूपों में जमाएँ स्वीकार की जाती हैं तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऋण भी प्रदान किए जाते हैं। बिना मुद्रा के इन कार्यों को करना सम्भव नहीं है। मुद्रा ही साख का आधार होती है।
3. सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of Property) – मुद्रा ही धन एवं पूँजी को तरल रूप प्रदान करती है। इसके तरल रूप में होने के कारण किसी भी कार्य में इसका तत्काल प्रयोग किया जा सकता है। इससे पूँजी की उत्पादकता में वृद्धि होती है। पूँजी को बड़ी आसानी से कम लाभदायक विनियोग से निकालकर अधिक लाभदायक विनियोग में लगाया जा सकता है।