एक व्यक्ति जो भी सम्पूर्ण आय प्राप्त करता है उसके एक भाग को वह अपने उपभोग में लाता है तथा शेष को वह भविष्य की आवश्यकताओं हेतु बचाकर रख लेता है। प्रो. कीन्स के अनुसार, आय का जो भाग उपभोग पर व्यय हो जाता है उसे उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं। अत: उपभोग की मात्रा व्यक्ति की आय पर निर्भर करती है। जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में वृद्धि होती है तथा जब आय में कमी हो जाती है तो उपभोग में भी कमी हो जाती है। लेकिन आय के शून्य होने पर उपभोग शून्य नहीं होता है क्योंकि इसे बचत से या ऋण लेकर पूरा किया जाता है। यहाँ पर ध्यान रखना होगा कि उपभोग प्रवृत्ति हमारा आशय केवल उपभोग की इच्छा से ही नहीं है अपितु वास्तव में उपभोग की गई मात्रा से है। आय तथा उपभोग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है। अतः यह कहा जाता है कि उपभोग आय का फलन है।
सूत्र रूप में
c = f(y)
यहाँ c = उपभोग
f = उपभोग फलन
y = प्रयोज्य आय
अगर उपभोग फलन एक सरल रेखा है तब
c = a + byd
यहाँ पर a = स्वायत्त उपभोग
b = सीमान्त उपभोग की प्रवृत्ति
उपभोग फलन का चित्र द्वारा प्रदर्शन
