मेनुअल एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के अन्तर को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है-
1. मानवीय लेखा प्रणाली के तत्व (Elements of Manual Accounting System)
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान मेनुअल रूप से होती है।
- लेन-देन का रिकार्ड एवं उनकी पुनः प्राप्ति मूल प्रविष्टियों की पुस्तकों से प्राप्त होती है।
- लेन-देन की प्रविष्टि सर्वप्रथम जर्नल में की जाती है, उसके बाद उसे बही खातों में पोस्ट किया जाता है। इस प्रकार वित्तीय लेन-देन को दो बार दर्ज किया जाता है।
- खाताबही बनाने के बाद खातों का संक्षिप्तीकरण करने हेतु तलपट तैयार किया जाता है।
- तलपट के माध्यम से अन्तिम खाते तैयार किये जाते हैं, जिसमें लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा बनाया जाता है।
- यदि किसी प्रकार की प्रविष्टियों या खाताबही में गलतियाँ रह जाती हैं तो उसमें सुधार हेतु समायोजन किये जाते हैं। इसके लिए त्रुटियों में प्रविष्टियों द्वारा किये जाते हैं।
- वर्ष के अन्त में लेखा खातों को बन्द कर दिया जाता है एवं उनके खाता शेष को अगले साल हस्तान्तरित कर दिया जाता है।
2. कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली (Computerized Accounting System)
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित पूर्व निर्धारित प्रोग्रामिंग के द्वारा की जाती है।
- वित्तीय व्यवहारों को डेटाबेस के माध्यम से रिकार्ड किया जाता है।
- संग्रहित किया हुआ डेटा खाताबही में अपने आप प्रोसेस हो जाता है।
- तलपट बनाने के लिए खाताबही की जरूरत नहीं पड़ती है। हर प्रविष्टि स्वतः ही खाता बही शेष निकाल सकती है। हर प्रविष्टि के बाद खाताबही शेष स्वतः ही तैयार हो जाता है।
- अन्तिम खाते, जैसे–लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा प्रविष्टियों के बाद ही बन जाता है। इसका कारण यह है कि कोई भी प्रविष्टि सीधे प्रोसेस होकर अन्तिम खाते बनाने के लिए तलपट पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
- त्रुटि सुधार के लिए किसी प्रकार की मेनुअल प्रविष्टि दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है। वाउचर के माध्यम से त्रुटि सुधार स्वतः ही हो जाता है।
- प्रारम्भिक एवं अन्तिम खाता शेष डेटाबेस में जमा हो जाते हैं।