साम्प्रदायिकता समाज की वह स्थिति है जिसमें विभिन्न धार्मिक समूह अन्य समूहों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान समय में भारतीय जीवन में जिस साम्प्रदायिकता की बात हो रही है, वह विघटनकारी है। वस्तुतः साम्प्रदायिकता का स्वरूप सदैव एक जैसा नहीं होता। यदि किसी एक प्रकार की साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है तो स्वाभाविक रूप से दूसरे प्रकार की साम्प्रदायिकता उत्पन्न हो जाती है। जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधक होती है। आज स्थिति यह हो गयी है कि हमने धार्मिक कारणों से अपने प्राचीन जीवन मूल्यों का त्याग करके विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि आज भारतीय जीवन धारा प्रदूषित हो रही है।